शिव पुराण - अमृत की झरना

शिव पुराण

शिव पुराण के कितने अध्याय है? शिव पुराण के अंशों को संहिता कहा जाता है। एक मत के अनुसार शिव पुराण में छह अध्याय हैं, जो विद्याश्वर संहिता, रुद्र संहिता, शत्रुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिता, उमा संहिता और कैलाश संहिता हैं। एक अन्य मत में शिव पुराण सात अध्यायों से बना है, इस मत में वायु संहिता के अतिरिक्त अध्याय का उल्लेख है।

विद्याश्वर संहिता

"विद्याश्वर संहिता" शिव पुराण का पहला अध्याय है, जो इस पौराणिक ग्रंथ का प्रारंभिक भाग है। यह अध्याय विभिन्न महात्म्यों, धार्मिक उपदेशों, और कथाओं का संग्रह है, जो भगवान शिव के महत्व और भक्तिगाथाओं को प्रस्तुत करता है।

  रुद्र संहिता

रुद्र संहिता शिव पुराण का पहला अध्याय है और इसमें भगवान शिव की महात्म्य, शक्तियाँ, और उनके पूजा-अर्चना के महत्वपूर्ण विवरण हैं। यह अध्याय भक्तों को शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है।

सहरुद्र संहिता

सहरुद्र संहिता" शिव पुराण का पहला अध्याय है और इसमें भगवान शिव के अन्य महात्म्यों, उनकी भक्तों के अनुभव, और उनके उपासना सम्बन्धी महत्वपूर्ण कथाएं समाहित हैं।

   कोटिरुद्र संहिता

“कोटिरुद्र संहिता” शिव पुराण का पहला अध्याय है, जो भगवान शिव के महत्वपूर्ण रूपों और उनकी महिमा का वर्णन करता है। इस अध्याय में भगवान शिव के कोटि (संख्या) रूपों का उल्लेख है, जिनमें वे अपने भक्तों के साथ संवाद करते हैं।

 उमासंहिता

“उमासंहिता” शिव पुराण का पहला अध्याय है, जो भगवान शिव और माता उमा (पार्वती) के अनुसार गणपति और कार्तिकेय (स्कंद) के जन्म और कथानक का विवरण करता है।

कैलाश संहिता

शिव पुराण का पहला अध्याय है, जो भगवान शिव के पवित्र धाम कैलास पर्वत के महत्वपूर्ण विवरण के साथ शुरू होता है। इस अध्याय में कैलास पर्वत का उच्चतम आध्यात्मिक महत्व और विशेषता का वर्णन है। यहां शिव के आवास का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है, जिसमें वहां के विभिन्न स्थानों, तालाबों, और नदियों का समावेश है।

भगवान शिव का स्वरूप अनेक रूपों और प्रतीकों में व्यक्त होता है, जो उनकी जटिलता और बहुआयामीता को दर्शाते हैं। वे विनाशक और सृष्टिकर्ता, योगी और नर्तक, शांत और रौद्र रूपों में विद्यमान हैं। भगवान शिव का यह बहुआयामी स्वरूप उन्हें हिंदू धर्म में सबसे लोकप्रिय और पूजनीय देवताओं में से एक बनाता है।

भक्ति का मार्ग मंत्र जप: शिव के विभिन्न मंत्रों का जप करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। पूजा-अर्चना: शिवलिंग की पूजा-अर्चना, अभिषेक, बेलपत्र और अन्य सामग्री चढ़ाना भक्ति का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। व्रत: सोमवार का व्रत, महाशिवरात्रि का व्रत और अन्य व्रत भक्तों को भगवान शिव से जोड़ने का साधन हैं। ध्यान: शिव ध्यान के माध्यम से भक्त अपने मन को शांत कर भगवान शिव से एकात्मता का अनुभव कर सकते हैं।