विष्णु पुराण भाग 1 के अध्याय शीर्षक (मरीचि आदि प्रजापतिगण और रौद्र सृष्टि का वर्णन): इस अध्याय में ब्रह्मा के मानस पुत्र मरीचि सहित अन्य प्रजापतियों की उत्पत्ति और उनके द्वारा सृष्टि की रचना का वर्णन किया गया है। साथ ही, रौद्र सृष्टि के अंतर्गत तामसिक गुणों से युक्त राक्षसों, दानवों, और यक्षों की उत्पत्ति की कथा भी विस्तार से प्रस्तुत की गई है। यह अध्याय सृष्टि की विविधता और विभिन्न तत्वों की उत्पत्ति के रहस्यों को उजागर करता है।
मरीचि आदि प्रजापतिगण, तामसिक सर्ग, स्वायम्भुव मनु और शतरूपा तथा उनकी सन्तान का वर्णन
मरीचि आदि प्रजापतिगण:
ब्रह्मा जी के नाभि कमल से उत्पन्न हुए चार प्रजापति थे – मरीचि, अंगीरा, पुलस्त्य और पुलह। इन चारों को ‘मरीचि आदि प्रजापति’ कहा जाता है।
मरीचि: मरीचि प्रजापति का विवाह कश्यप की पुत्री कलावती से हुआ था। इनके पुत्र कश्यप थे, जो ऋषि थे और अनेक देवी-देवताओं, राक्षसों और यक्षों के पिता थे।
अंगीरा: अंगीरा प्रजापति का विवाह उर्वशी नामक स्त्री से हुआ था। इनके पुत्र अग्निदेव, बृहस्पति और ऋषि अंगीरास थे।
पुलस्त्य: पुलस्त्य प्रजापति का विवाह प्रभा नामक स्त्री से हुआ था। इनके पुत्र विश्वामित्र, अत्रि और ऋषि पुलस्त्य थे।
पुलह: पुलह प्रजापति का विवाह श्वेता नामक स्त्री से हुआ था। इनके पुत्र ऋषि पुलह और अग्निदेव के पुत्र आग्नेय थे।
तामसिक सर्ग:
ब्रह्मा जी ने तामसिक गुणों से तामसिक सर्ग की रचना की। इस सर्ग में राक्षस, यक्ष, किन्नर, किंपुरुष, पिशाच, गंधर्व, प्रेत और भूत आदि जीवों का जन्म हुआ। इन जीवों में क्रोध, हिंसा, अहंकार और लोभ जैसे तामसिक गुणों की प्रधानता थी।
स्वायम्भुव मनु और शतरूपा:
ब्रह्मा जी ने तामसिक सर्ग के बाद सतोगुणों से सतोगुणी सर्ग की रचना की। इस सर्ग में स्वायम्भुव मनु और शतरूपा नामक प्रथम मानव जोड़े का जन्म हुआ। स्वायम्भुव मनु को ब्रह्मा जी ने मनुष्य जाति का प्रजापति बनाया। शतरूपा मनु की पत्नी थीं।
स्वायम्भुव मनु और शतरूपा की सन्तान:
स्वायम्भुव मनु और शतरूपा के तीन पुत्र और तीन पुत्रियां थीं। पुत्रों के नाम इला, उत्तानपाद और कृष्ण थे। पुत्रियों के नाम विराट, अकुति और देवहूति थे।
इला: इला का विवाह मनु के पुत्र उत्तानपाद से हुआ था। इनके पुत्र पुरुरवा थे, जो चंद्रवंश के प्रथम राजा थे।
उतानपाद: उत्तानपाद का विवाह मनु की पुत्री विराट से हुआ था। इनके पुत्र ध्रुव थे, जो ध्रुव तारा के रूप में प्रसिद्ध हैं।
कृष्ण: कृष्ण का विवाह मनु की पुत्री अकुति से हुआ था। इनके पुत्र वल्मीकि थे, जिन्होंने रामायण महाकाव्य की रचना की थी।
विराट: विराट का विवाह मनु के पुत्र उत्तानपाद से हुआ था। इनके पुत्र ध्रुव थे, जो ध्रुव तारा के रूप में प्रसिद्ध हैं।
अकुति: अकुति का विवाह मनु के पुत्र कृष्ण से हुआ था। इनके पुत्र वल्मीकि थे, जिन्होंने रामायण महाकाव्य की रचना की थी।
देवहूति: देवहूति का विवाह कश्यप ऋषि से हुआ था। इनके पुत्रों में अदिति, दिति, कर्दम, दक्ष, विष्णु और इंद्र शामिल थे।
निष्कर्ष:
मरीचि आदि प्रजापति, तामसिक सर्ग, स्वायम्भुव मनु और शतरूपा तथा उनकी सन्तान हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित महत्वपूर्ण अवधारणाएं हैं।
मरीचि आदि प्रजापतिगण
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, ब्रह्मा जी के नाभिकमल से चार प्रजापति उत्पन्न हुए थे। इन्हें सामूहिक रूप से “मरीचि आदि प्रजापतिगण” के नाम से जाना जाता है। ये चार प्रजापति हैं –
- मरीचि
- अंगीरा
- पुलस्त्य
- पुलह
इन प्रजापतियों को सृष्टि के आरंभिक रचनाकारों में से माना जाता है। आइए, इन चारों के बारे में थोड़ा विस्तार से जानते हैं:
मरीचि: मरीचि प्रजापति को ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों में से एक माना जाता है। इनका विवाह कश्यप ऋषि की कन्या कलावती से हुआ था। इनके पुत्र कश्यप ऋषि ही थे, जो अनेक देवी-देवताओं, राक्षसों और यक्षों के पिता के रूप में विख्यात हैं।
अंगीरा: अंगीरा प्रजापति का विवाह उर्वशी नामक अप्सरा से हुआ था। इनके पुत्रों में अग्निदेव, बृहस्पति (देवताओं के गुरु) और ऋषि अंगीरास शामिल थे।
पुलस्त्य: पुलस्त्य प्रजापति का विवाह प्रभा नामक स्त्री से हुआ था। इनके पुत्रों में प्रसिद्ध ऋषि विश्वामित्र, ऋषि अत्रि और स्वयं ऋषि पुलस्त्य शामिल थे।
पुलह: पुलह प्रजापति का विवाह श्वेता नामक स्त्री से हुआ था। इनके पुत्र ऋषि पुलह और अग्निदेव के पुत्र आग्नेय थे।
यह माना जाता है कि मरीचि आदि प्रजापतियों ने सृष्टि के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों और विभिन्न जीवों की उत्पत्ति में योगदान दिया। इनके वंशजों ने आगे चलकर सृष्टि के संचालन में अहम भूमिका निभाई।
तामसिक सर्ग
हिंदू धर्म के सृष्टि विज्ञान में, तामसिक सर्ग ब्रह्मांड की रचना की एक अवस्था को दर्शाता है। यह सृष्टि के तीन गुणों – सत्व (शुद्धता), रजस (गतिशीलता) और तमस (अज्ञान) – में से तमोगुण से उत्पन्न होने वाली सृष्टि है।
तामसिक सर्ग की विशेषताएं:
तमोगुण की प्रधानता: इस सर्ग में अज्ञान, अंधकार, जड़ता और आलस्य जैसे तमोगुण प्रमुख होते हैं।
जीवों का जन्म: तामसिक सर्ग से राक्षस, यक्ष, किन्नर, किंपुरुष, पिशाच, गंधर्व, प्रेत और भूत जैसे जीवों की उत्पत्ति हुई।
स्वभाव: इन जीवों में क्रोध, हिंसा, अहंकार और लोभ जैसे गुण पाए जाते हैं।
ऋग्वेद में उल्लेख: ऋग्वेद के कुछ मंत्रों में तामसिक सर्ग का संकेत मिलता है।
तामसिक सर्ग का महत्व:
संतुलन बनाए रखना: सृष्टि के संतुलन को बनाए रखने के लिए तीनों गुणों का अस्तित्व आवश्यक माना जाता है। तामसिक सर्ग इस संतुलन का एक हिस्सा है।
कर्मफल का सिद्धांत: तामसिक सर्ग यह दर्शाता है कि कर्मों के आधार पर विभिन्न प्रकार के जीवों की उत्पत्ति होती है।
ध्यान देने योग्य बातें:
तामसिक सर्ग को नकारात्मकता के रूप में नहीं, बल्कि सृष्टि के समग्र स्वरूप के एक अंग के रूप में देखा जाता है।
सृष्टि के रचना क्रम में तामसिक सर्ग के बाद सतोगुण से युक्त सतोगुणी सर्ग का वर्णन आता है, जहां मनु और शतरूपा जैसे सकारात्मक गुणों वाले प्राणियों की उत्पत्ति होती है।
स्वायम्भुव मनु और शतरूपा: मानवजाति के प्रथम जोड़े
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, स्वायम्भुव मनु और शतरूपा पृथ्वी पर मानव सृष्टि के प्रथम जोड़े माने जाते हैं। इनके बारे में विस्तृत जानकारी विभिन्न ग्रंथों में मिलती है, आइए जाने इनके विषय में:
स्वायम्भुव मनु की उत्पत्ति:
- ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि रचना के क्रम में तामसिक सर्ग के बाद सतोगुणी सर्ग का वर्णन आता है।
- इसी सतोगुणी सर्ग से उत्पन्न हुए माने जाते हैं स्वायम्भुव मनु।
- कुछ ग्रंथों में यह भी उल्लेख मिलता है कि ब्रह्मा जी ने अपने शरीर के दो भागों से मनु और शतरूपा को जन्म दिया।
स्वायम्भुव मनु का महत्व:
- हिंदू धर्म में मनु को मानवजाति का प्रथम प्रजापति माना जाता है।
- प्रजापति का अर्थ होता है – प्रजा का पिता।
- मनु को धर्म और सभ्यता का प्रवर्तक माना जाता है।
- मनुस्मृति नामक ग्रंथ उनके द्वारा प्रतिपादित धर्म शास्त्रों का संग्रह माना जाता है।
शतरूपा:
- शतरूपा मनु की पत्नी थीं।
- इन्हें सृष्टि की प्रथम स्त्री माना जाता है।
स्वायम्भुव मनु और शतरूपा की सन्तान:
इनके विवाह से तीन पुत्र – इला, उत्तानपाद और कृष्ण तथा तीन पुत्रियां – विराट, अकुति और देवहूति पैदा हुईं। इनकी संतानों से ही आगे चलकर मानव वंश का विस्तार हुआ।
कथाओं में उल्लेख:
- स्वायम्भुव मनु और शतरूपा का उल्लेख विभिन्न पुराणों और ग्रंथों में मिलता है, जिनमें सतयुग, मनुस्मृति, भागवत पुराण आदि शामिल हैं।
सार:
स्वायम्भुव मनु और शतरूपा हिंदू धर्म में मानव सृष्टि की शुरुआत का प्रतीक हैं। इनके माध्यम से सृष्टि के क्रम और मानव जाति की उत्पत्ति को समझाया जाता है।
रौद्र सृष्टि और भगवान तथा लक्ष्मीजी की सर्वव्यापकता का वर्णन
रौद्र सृष्टि:
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, ब्रह्मा जी ने तीन प्रकार की सृष्टि की – सतोगुणी सर्ग, तामसिक सर्ग और रौद्र सर्ग। रौद्र सृष्टि को क्रोध, हिंसा और विनाश से युक्त सृष्टि माना जाता है।
रौद्र सृष्टि की विशेषताएं:
- रुद्र देव: रौद्र सृष्टि के देवता रुद्र हैं, जिन्हें भगवान शिव का एक रूप माना जाता है।
- विनाशकारी शक्तियां: रौद्र सृष्टि में विनाशकारी शक्तियों का प्रभुत्व होता है।
- प्राकृतिक आपदाएं: रौद्र सृष्टि से भूकंप, बाढ़, तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएं जुड़ी होती हैं।
- नकारात्मक भावनाएं: क्रोध, हिंसा, भय जैसी नकारात्मक भावनाएं रौद्र सृष्टि में प्रबल होती हैं।
भगवान और लक्ष्मीजी की सर्वव्यापकता:
रौद्र सृष्टि के विनाशकारी स्वरूप के बावजूद, भगवान और लक्ष्मीजी सर्वव्यापी हैं।
- भगवान: भगवान रौद्र सृष्टि में भी विद्यमान हैं और विनाशकारी शक्तियों को नियंत्रित करते हैं।
- लक्ष्मीजी: लक्ष्मीजी रौद्र सृष्टि में भी समृद्धि और वैभव प्रदान करती हैं।
उदाहरण:
- शिव का तांडव: भगवान शिव रौद्र सृष्टि के देवता हैं। जब वे तांडव करते हैं, तो वे विनाशकारी शक्तियों का प्रतीक बनते हैं।
- लक्ष्मीजी का वरदान: रौद्र सृष्टि में भी लक्ष्मीजी उन लोगों को समृद्धि प्रदान करती हैं जो कर्मठ और ईश्वर भक्त होते हैं।
निष्कर्ष:
रौद्र सृष्टि सृष्टि के विनाशकारी पहलू का प्रतीक है। भले ही विनाशकारी शक्तियां हों, भगवान और लक्ष्मीजी सर्वव्यापी हैं और रौद्र सृष्टि में भी अपना प्रभाव बनाए रखते हैं।
ध्यान देने योग्य बातें:
- रौद्र सृष्टि को नकारात्मकता के रूप में नहीं, बल्कि सृष्टि के समग्र स्वरूप के एक अंग के रूप में देखा जाता है।
- रौद्र सृष्टि यह दर्शाती है कि विनाश भी सृष्टि का एक आवश्यक हिस्सा है।
- रौद्र सृष्टि से यह शिक्षा मिलती है कि हमें विनाशकारी शक्तियों को नियंत्रित करना सीखना चाहिए और भगवान और लक्ष्मीजी की भक्ति में लीन रहना चाहिए।
रूद्र सर्ग का वर्णन
कल्प के आरंभ में:
ब्रह्मा जी अपने समान पुत्र उत्पन्न करने की इच्छा रखते हुए ध्यानमग्न थे। तभी, उनकी गोद में नीललोहित वर्ण का एक कुमार प्रकट हुआ।
जन्म और नामकरण:
जन्म लेते ही, वह कुमार जोर-जोर से रोने और इधर-उधर दौड़ने लगा। ब्रह्मा जी ने उसे रोता देख पूछा, “तू क्यों रोता है?” कुमार ने उत्तर दिया, “मेरा नाम रखिए।”
तब ब्रह्मा जी बोले, “हे देव! तुम्हारा नाम रूद्र है। अब मत रो, धैर्य धारण करो।”
लेकिन, रूद्र रोता रहा। उसने सात बार और रोया।
अष्ट नाम और स्थान:
इस पर भगवान ब्रह्मा जी ने उसके सात और नाम रखे – भव, शर्व, ईशान, पशुपति, भीम, उग्र और महादेव।
इन आठों नामों के साथ-साथ, उन्होंने रूद्र के स्थान भी निश्चित किए:
- सूर्य
- जल
- पृथ्वी
- वायु
- अग्नि
- आकाश
- यज्ञ में दीक्षित ब्राह्मण
- चंद्रमा
मूर्तियाँ, पत्नियाँ और पुत्र:
इन आठों स्थानों पर रूद्र की मूर्तियाँ स्थापित की गईं।
- सूर्य – सुवर्चला
- जल – ऊषा
- पृथ्वी – विकेशी
- वायु – अपरा
- अग्नि – शिवा
- आकाश – स्वाहा
- यज्ञ में दीक्षित ब्राह्मण – दिशा
- चंद्रमा – रोहिणी
इनके क्रमशः सुवर्चला, ऊषा, विकेशी, अपरा, शिवा, स्वाहा, दिशा, और रोहिणी नामक पत्नियाँ थीं।
इन पत्नियों से रूद्र के अनेक पुत्र हुए:
- शनैश्वर
- शुक्र
- लोहितांग
- मनोजव
- स्कन्द
- सर्ग
- सन्तान
- बुध
सती और उमा:
भगवान रूद्र ने प्रजापति दक्ष की पुत्री सती को अपनी पत्नी रूप में ग्रहण किया। सती ने दक्ष के यज्ञ में अपने पिता का अपमान सहन नहीं कर पाया और अपना शरीर त्याग दिया।
बाद में, वह मेना के गर्भ से हिमाचल की पुत्री उमा के रूप में जन्मीं। भगवान शंकर ने पुनः उमा से विवाह किया।
अन्य जन्म:
भृगु ऋषि की पुत्री ख्याति ने धाता और विधाता नामक दो देवताओं को जन्म दिया।
उन्होंने लक्ष्मीजी को भी जन्म दिया, जो भगवान विष्णु की पत्नी बनीं।
निष्कर्ष:
यह रूद्र सर्ग का संक्षिप्त वर्णन है। रूद्र, भगवान शिव के अनेक नामों में से एक है।
यह कथा दर्शाती है कि कैसे रूद्र का जन्म हुआ, उनके नाम, स्थान, पत्नियाँ, पुत्र और अन्य देवताओं से उनका संबंध क्या है।