विष्णु पुराण भाग 1 के अध्याय शीर्षक ( ग्रंथ का उपोद्घात ,चौबीस तत्वों का वर्णन)।विष्णु पुराण भाग 1 के उपोद्घात में ग्रंथ का समर्थन किया जाता है और ब्रह्मांड के सृष्टिक्रम की उत्पत्ति के प्रारंभिक वर्णन किया जाता है। इसके बाद, चौबीस तत्वों का वर्णन होता है जो सृष्टि के विभिन्न पहलुओं को समझाते हैं। यह भाग ब्रह्मांड के रहस्यमय आरंभिक अध्यायों को व्याख्यात करता है और हिन्दू धर्म की प्राचीन दृष्टिकोण को प्रकट करता है।

विष्णु पुराण भाग 1 के अध्याय शीर्षक(मरीचि आदि प्रजापतिगण और रौद्र सृष्टि का वर्णन )
विष्णु पुराण भाग 1 के अध्याय शीर्षक(मरीचि आदि प्रजापतिगण और रौद्र सृष्टि का वर्णन )

अध्याय 1: ग्रंथ का उपोद्घात

विष्णु पुराण भाग 1 के उपोद्घात में ग्रंथ का समर्थन किया जाता है और ब्रह्मांड के सृष्टिक्रम की उत्पत्ति के प्रारंभिक वर्णन किया जाता है। इसके बाद, चौबीस तत्वों का वर्णन होता है जो सृष्टि के विभिन्न पहलुओं को समझाते हैं। यह भाग ब्रह्मांड के रहस्यमय आरंभिक अध्यायों को व्याख्यात करता है और हिन्दू धर्म की प्राचीन दृष्टिकोण को प्रकट करता है।

अध्याय 2:चौबीस तत्वों के साथ जगत के उत्पत्तिक्रम का वर्णन और विष्णु की महिमा

ष्णु पुराण के इस अध्याय में चौबीस तत्वों के साथ ब्रह्मांड की उत्पत्तिक्रम का विवरण दिया गया है। यहां पर चौबीस तत्वों का वर्णन इस प्रकार होता है जैसे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मनस, बुद्धि, अहंकार, पंचतन्मात्रा, इन्द्रियाँ, तन्मात्राएँ, एहिंसा, धर्म, अधर्म, जाति, अयु, शुक्र, क्रोध, याम, श्राद्ध, महर्षि, देवता, दानव, पितर, मनुष्य और विमान सर्व के साथ जगत के उत्पत्तिक्रम का वर्णन दिया और

अध्याय 1: ग्रंथ का उपोद्घात

विष्णु पुराण हिन्दू धर्म के अठारह महापुराणों में से एक है। यह पुराण मुख्य रूप से भगवान विष्णु की महिमा और उनके विभिन्न अवतारों की कथा का वर्णन करता है। विष्णु पुराण की रचना महर्षि पराशर द्वारा की गई थी। इस पुराण में छह अंश (भाग) होते हैं, जिनमें से प्रत्येक अंश में विभिन्न कथाओं और घटनाओं का वर्णन है।

उपोद्घात (प्रस्तावना)

विष्णु पुराण के पहले अंश का प्रारंभ महर्षि पराशर और उनके शिष्य मैत्रेय के संवाद से होता है। मैत्रेय ऋषि महर्षि पराशर से सृष्टि की उत्पत्ति, भगवान विष्णु के अवतार, और संसार के धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के विषय में जानना चाहते हैं।

महर्षि पराशर बताते हैं कि सृष्टि के प्रारंभ में केवल भगवान विष्णु ही थे। उन्होंने ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में त्रिदेवों की रचना की। ब्रह्मा ने सृष्टि की उत्पत्ति की, विष्णु ने इसका पालन-पोषण किया, और महेश (शिव) ने इसके संहार की जिम्मेदारी ली।

इसके बाद, महर्षि पराशर भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की कथा सुनाते हैं, जिसमें मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, और कल्कि अवतार शामिल हैं। इन अवतारों की कथा सुनाते समय, महर्षि पराशर उनके द्वारा किए गए कार्यों और उनके महत्व को भी बताते हैं।

विष्णु पुराण में चार प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन है: धर्म (सत्य और धार्मिकता का पालन), अर्थ (धन और संसाधनों का उचित उपयोग), काम (इच्छाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति), और मोक्ष (आत्मा की मुक्ति)। इस पुराण में ये सभी उद्देश्यों को प्राप्त करने के मार्ग और उनके महत्व को विस्तार से समझाया गया है।

इस प्रकार, विष्णु पुराण का पहला अंश (भाग) भगवान विष्णु की महिमा, उनके अवतारों की कथा, और संसार के चार प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन करता है। यह पुराण न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें दी गई शिक्षाएं और कथाएं आज भी हमारे जीवन को दिशा और प्रेरणा देने में सहायक हैं।

अध्याय 2:चौबीस तत्वों के साथ जगत के उत्पत्तिक्रम का वर्णन और विष्णु की महिमा

विष्णु पुराण के अनुसार, जगत की उत्पत्ति चौबीस तत्वों से होती है। इन तत्वों को पंचभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) और अष्टगुण (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध, बुद्धि, अहंकार, और मन) के सम्मिश्रण से उत्पन्न माना जाता है। इनके साथ एकादश इन्द्रियाँ (पांच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ और मन) और आत्मा भी जगत के निर्माण में अपना योगदान देते हैं।

जगत के उत्पत्तिक्रम का वर्णन इस प्रकार है:

  1. शून्य: सर्वप्रथम, केवल शून्य था, जिसमें कुछ भी नहीं था।
  2. महाप्रलय: फिर, पिछले कल्प के अंत में महाप्रलय हुआ, जिसमें सृष्टि का विनाश हो गया।
  3. गरभोदधि: महाप्रलय के बाद, भगवान विष्णु क्षीरसागर (गरभोदधि) पर शेषनाग की शय्या पर लेट गए।
  4. कमल: भगवान विष्णु के नाभि कमल से भगवान ब्रह्मा का जन्म हुआ।
  5. सृष्टि का आरंभ: भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण आरंभ किया।
  6. पंचभूत: सर्वप्रथम, उन्होंने पंचभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) की रचना की।
  7. अष्टगुण: इसके बाद, उन्होंने अष्टगुणों (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध, बुद्धि, अहंकार, और मन) को जन्म दिया।
  8. इन्द्रियाँ: फिर, उन्होंने एकादश इन्द्रियों (पांच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ और मन) की रचना की।
  9. आत्मा: अंत में, उन्होंने जीवों में आत्मा का प्रवेश कराया।
  10. विविध लोक: भगवान ब्रह्मा ने विभिन्न लोकों (स्वर्ग, नर्क, मृत्युलोक, आदि) का निर्माण भी किया।

विष्णु की महिमा:

विष्णु पुराण में भगवान विष्णु को सृष्टि के रक्षक और पालक देवता के रूप में वर्णित किया गया है। वे जगत को संहार से बचाते हैं और धर्म की रक्षा करते हैं। भगवान विष्णु के अनेक अवतार हैं, जिनमें राम, कृष्ण, कल्कि आदि शामिल हैं।

विष्णु पुराण में भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन अनेक कथाओं और स्तुतियों के माध्यम से किया गया है। कुछ प्रसिद्ध स्तुतियों में विष्णु सहस्रनाम और श्री विष्णु स्तुति शामिल हैं।

निष्कर्ष:

विष्णु पुराण में चौबीस तत्वों के विचार के साथ जगत के उत्पत्तिक्रम का विस्तृत वर्णन मिलता है। भगवान विष्णु को सृष्टि के रक्षक और पालक देवता के रूप में उनकी महिमा का गुणगान किया गया है।

कंडू ऋषि
कंडू ऋषि

महर्षि पराशर

महर्षि पराशर का वर्णन हिंदू धर्म और पुराणों में एक महान ऋषि और विद्वान के रूप में किया गया है। वे प्रसिद्ध महर्षि वशिष्ठ के पुत्र और व्यास के पिता थे। पराशर ऋषि को उनकी तपस्या, ज्ञान और कई धार्मिक ग्रंथों के रचयिता के रूप में जाना जाता है। वे विष्णु पुराण के प्रमुख लेखक माने जाते हैं, जिसमें उन्होंने भगवान विष्णु की महिमा और ब्रह्मांड की सृष्टि का विस्तार से वर्णन किया है।

महर्षि पराशर के जीवन का मुख्य वर्णन:

  1. वंश और जन्म: महर्षि पराशर महर्षि वशिष्ठ के पुत्र थे। उनकी माता अरुंधति थीं। एक कथा के अनुसार, उनका जन्म एक कठिन परिस्थिति में हुआ था जब उनकी माता को पांडव नदी के तट पर अकेला छोड़ दिया गया था। पराशर का जन्म और उनका नामकरण एक अद्वितीय घटना के रूप में वर्णित है।

  2. तपस्या और ज्ञान: पराशर ने कठोर तपस्या और अध्ययन के माध्यम से व्यापक ज्ञान अर्जित किया। उन्हें वेदों, पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों का गहन ज्ञान था। उनकी तपस्या और साधना के कारण वे दिव्य दृष्टि और अलौकिक शक्तियों से संपन्न हुए।

  3. विष्णु पुराण: महर्षि पराशर को विष्णु पुराण के रचयिता के रूप में माना जाता है। इस पुराण में उन्होंने भगवान विष्णु की महिमा, सृष्टि के विभिन्न पहलुओं, देवताओं और ऋषियों की कथाओं का विस्तार से वर्णन किया है। विष्णु पुराण में सृष्टि के चौबीस तत्वों का वर्णन और भगवान विष्णु की सर्वव्यापकता पर विशेष बल दिया गया है।

  4. संतान और परिवार: महर्षि पराशर का विवाह सत्यवती से हुआ, जिनसे उन्हें वेदव्यास नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। वेदव्यास ने महाभारत, भागवत पुराण और अन्य कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की। वेदव्यास का जन्म एक विशेष घटना के रूप में वर्णित है, जिसमें सत्यवती एक मछुआरे की बेटी थीं और पराशर ने उन्हें वरदान देकर उनके मछली की गंध को समाप्त कर दिया था।

  5. धार्मिक योगदान: महर्षि पराशर ने विभिन्न धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों की रचना की। उनके द्वारा रचित ग्रंथों में पराशर स्मृति भी शामिल है, जो धर्मशास्त्र का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसमें धार्मिक कर्तव्यों, सामाजिक नियमों और नैतिकता का विस्तृत वर्णन किया गया है।

महर्षि पराशर की महिमा:

महर्षि पराशर एक महान तपस्वी और विद्वान थे, जिनका ज्ञान और धार्मिक योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके द्वारा रचित ग्रंथों और पुराणों ने हिंदू धर्म को एक संरचना और दिशा दी है। विष्णु पुराण के माध्यम से उन्होंने भगवान विष्णु की महिमा और सृष्टि के रहस्यों का विस्तार से वर्णन किया है, जिससे भक्तों को आध्यात्मिक ज्ञान और प्रेरणा मिलती है। उनके जीवन और कार्यों से यह स्पष्ट होता है कि वे एक महान ऋषि थे, जिनका उद्देश्य धर्म, ज्ञान और नैतिकता की स्थापना करना था।

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