विरभद्र का प्रकोप और दक्ष का पुनर्जन्म।वीरभद्र द्वारा दक्ष वध और भगवान शिव द्वारा बकरे का सिर देकर दक्ष के पुनर्जीवन की कथा हिंदू पौराणिक कथाओं में प्रमुख है।यह कथा दक्ष प्रजापति के अहंकार, सती के आत्मदाह, और भगवान शिव के क्रोध के परिणामस्वरूप वीरभद्र के प्राकट्य और दक्ष के वध की कहानी है। अंततः भगवान शिव ने दक्ष को बकरे का सिर देकर पुनर्जीवित किया, जिससे यह कथा क्षमा, पश्चाताप और पुनर्जन्म के महत्व को दर्शाती है।
शिव पुराण कथा
वीरभद्र द्वारा दक्ष का वध और भगवान शिव द्वारा दक्ष को बकरे का सिर देकर पुनर्जीवित करना एक प्रमुख पौराणिक कथा है, जो शिव पुराण में वर्णित है। यह कथा भगवान शिव और सती के विवाह, दक्ष प्रजापति के अहंकार, और अंततः उनके पश्चाताप और पुनर्जीवन की घटनाओं पर आधारित है।
कथा का आरंभ
दक्ष प्रजापति, ब्रह्मा के पुत्र और सती के पिता, अत्यंत अहंकारी और भगवान शिव के प्रति दुर्भावनापूर्ण थे। जब सती ने भगवान शिव से विवाह किया, तो दक्ष ने इस विवाह को स्वीकार नहीं किया और शिव का तिरस्कार किया।
यज्ञ का आयोजन
दक्ष ने एक महान यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवताओं और ऋषियों को आमंत्रित किया, लेकिन जानबूझकर भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। जब सती ने यह सुना, तो उन्होंने अपने पति शिव से अनुमति लेकर यज्ञ में जाने का निर्णय लिया। शिव ने उन्हें जाने से मना किया, लेकिन सती ने आग्रह किया और यज्ञ में पहुंच गईं।
सती का आत्मदाह
यज्ञ स्थल पर पहुंचने पर सती ने देखा कि उनके पिता दक्ष ने शिव का अपमान किया और उनके लिए कोई आसन नहीं रखा था। इस अपमान और अपने पिता के व्यवहार से दुखी होकर सती ने यज्ञ अग्नि में आत्मदाह कर लिया।
वीरभद्र का प्रकट होना
सती के आत्मदाह की खबर सुनकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए। उनके क्रोध से उनके जटाओं से वीरभद्र का प्राकट्य हुआ। वीरभद्र एक प्रचंड योद्धा थे और उन्होंने शिव के आदेश पर दक्ष के यज्ञ को ध्वस्त कर दिया। वीरभद्र ने दक्ष का वध कर दिया और यज्ञ को नष्ट कर दिया।
दक्ष का पुनर्जीवन
दक्ष के वध के बाद सभी देवता भगवान शिव के पास गए और उनसे दक्ष को जीवनदान देने की प्रार्थना की। भगवान शिव का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने दक्ष को पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया। लेकिन दक्ष का सिर पहले ही जल चुका था, इसलिए भगवान शिव ने एक बकरे का सिर दक्ष के धड़ पर स्थापित कर उन्हें पुनर्जीवित कर दिया।
पश्चाताप और शांति
पुनर्जीवित होने के बाद, दक्ष ने भगवान शिव से क्षमा मांगी और अपने अहंकार के लिए पश्चाताप किया। उन्होंने शिव और सती की महानता को स्वीकार किया और उन्हें उचित सम्मान दिया। इस प्रकार, भगवान शिव ने दक्ष को क्षमा कर दिया और यज्ञ को पूरा किया।
कथा का आरंभ: दक्ष प्रजापति और सती
दक्ष प्रजापति ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे और वे तीन लोकों के राजा थे। वे अत्यंत अहंकारी और घमंडी थे। उन्हें अपना ही सर्वश्रेष्ठ लगता था। दक्ष की कई पुत्रियाँ थीं, जिनमें से एक थी सती। सती भगवान शिव की परम भक्त थीं और उन्होंने शिव जी से विवाह करने का निश्चय किया था।
सती का विवाह
सती ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर भगवान शिव से विवाह कर लिया। दक्ष को यह बात बिल्कुल भी पसंद नहीं आई। उन्हें शिव जी का तिरस्कार था क्योंकि वे तापसी और सादा जीवन जीते थे। दक्ष को शिव जी एक सामान्य मनुष्य से अधिक नहीं लगते थे।
दक्ष का यज्ञ और सती का त्याग
अपनी पुत्री के इस विवाह से नाराज दक्ष ने एक बड़ा यज्ञ करने का निश्चय किया। इस यज्ञ में उन्होंने भगवान शिव और पार्वती को आमंत्रित नहीं किया। सती को जब इस बात का पता चला तो वह बहुत दुखी हुई। उसने अपने पिता को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन दक्ष नहीं माने। अंत में, निराश होकर सती ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर प्राण त्याग दिए।
शिव का क्रोध और विरभद्र का जन्म
सती के त्याग से भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हुए। उन्होंने अपने जटाओं से एक भयंकर राक्षस को उत्पन्न किया, जिसका नाम विरभद्र था। विरभद्र ने दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया और दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया।
दक्ष का पुनर्जीवन
शिव जी को क्रोध शांत होने पर दक्ष पर दया आई और उन्होंने उन्हें पुनर्जीवित कर दिया। लेकिन उन्होंने दक्ष को बकरी का सिर लगाकर पुनर्जीवित किया, जिससे दक्ष को बहुत शर्मिंदगी हुई। तब जाकर दक्ष को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने शिव जी से क्षमा मांगी।
वीरभद्र का प्रकट होना: एक विस्तृत विवरण
शिव का क्रोध और वीरभद्र का जन्म
सती के आत्मदाह के बाद, भगवान शिव का क्रोध इतना बढ़ गया कि उनके जटाओं से एक भीषण राक्षस प्रकट हुआ। इस राक्षस का नाम था वीरभद्र। वीरभद्र का रूप अत्यंत भयानक था। उनके दांत तेज चाकू की तरह चमकते थे और आंखों से आग की लपटें निकलती थीं। शिव ने वीरभद्र को दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने का आदेश दिया।
वीरभद्र का दक्ष के यज्ञ पर आक्रमण
वीरभद्र अत्यंत वेग से दक्ष के यज्ञ स्थल पर पहुंचे। उन्होंने वहां उपस्थित सभी देवताओं और दानवों को परास्त कर दिया। वीरभद्र का क्रोध इतना प्रचंड था कि उन्होंने यज्ञ की वेदी को तोड़ डाला और यज्ञ कुंड को नष्ट कर दिया।
दक्ष का वध
अंत में, वीरभद्र ने दक्ष के पास पहुंचकर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। दक्ष के मरने के बाद, यज्ञ में उपस्थित सभी देवता और दानव भयभीत हो गए।
वीरभद्र का स्वरूप
वीरभद्र का स्वरूप शिव के क्रोध का प्रतीक था। वे अत्यंत शक्तिशाली और क्रूर थे। उनका रूप देखकर सभी देवता और दानव कांप उठे थे।
दक्ष का पुनर्जीवन: एक विस्तृत विवरण
देवताओं की प्रार्थना
जब वीरभद्र ने दक्ष का वध कर दिया, तो सभी देवता भगवान शिव के पास गए और उनसे दक्ष को जीवनदान देने की प्रार्थना करने लगे। उन्होंने कहा कि दक्ष भले ही गलत थे, लेकिन वे ब्रह्मा जी के पुत्र थे और तीनों लोकों के राजा थे। इसलिए उन्हें दंड मिलना तो चाहिए, लेकिन मृत्यु नहीं।
शिव का दयाभाव
भगवान शिव देवताओं की प्रार्थना सुनकर दयालु हो गए। उन्होंने दक्ष पर दया की और उन्हें पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया। लेकिन दक्ष का सिर पहले ही जल चुका था और अब उसके पास कोई सिर नहीं था।
बकरी का सिर
भगवान शिव ने अपनी दिव्य शक्ति से एक बकरी का सिर बनाया और उसे दक्ष के धड़ पर स्थापित कर दिया। इस प्रकार दक्ष पुनर्जीवित हो गए, लेकिन अब उनका सिर बकरी जैसा हो गया था।
दक्ष को शिक्षा
दक्ष को जब होश आया तो उन्हें अपनी दशा देखकर बहुत शर्म आई। उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान शिव से क्षमा मांगी। भगवान शिव ने उन्हें क्षमा कर दिया, लेकिन साथ ही उन्हें शिक्षा भी दी कि अहंकार और घमंड कभी अच्छे परिणाम नहीं देते हैं।
दक्ष का परिवर्तन
इस घटना के बाद, दक्ष में बहुत परिवर्तन आया। वे अहंकारी नहीं रहे, बल्कि विनम्र हो गए। उन्होंने भगवान शिव को अपना आदर्श माना और उनके भक्त बन गए।