वाराही देवी: दुर्गा का भयंकर रूप ।वाराही देवी, शक्ति और सौभाग्य की प्रतीक, हिन्दू धर्म में पूजनीय देवी हैं। माना जाता है ये माँ दुर्गा के सात रूपों में से एक हैं और भगवान विष्णु के वराह अवतार की शक्ति हैं. इनका स्वरूप विशिष्ट है – ऊपरी भाग मानव का और नीचे का भाग वाराह (जंगली सूअर) का। वाराही देवी ने शुम्भ और निशुंभ नामक राक्षसों के वध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

वाराही देवी: दुर्गा का भयंकर रूप ।
वाराही देवी: दुर्गा का भयंकर रूप ।

वाराही देवी

हिन्दू धर्म में वाराही देवी की पूजा शक्ति और सौभाग्य के लिए की जाती है. ये माँ दुर्गा के सात रूपों में से एक मानी जाती हैं, और इनको भगवान विष्णु के वराह अवतार की शक्ति माना जाता है. इनका स्वरूप एकदम विशिष्ट है – ऊपरी भाग मानव का और नीचे का भाग वाराह (जंगली सूअर) का होता है.

वाराही देवी से जुड़ी हुई कई मान्यताएं हैं:

  • शक्तिपीठ: वाराणसी में स्थित वाराही देवी का मंदिर एक शक्तिपीठ माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि माता सती के दांत यहीं गिरे थे, जिसके बाद यहां वाराही देवी उत्पन्न हुई थीं.
  • दुर्गा की सेनापति: कई ग्रंथों में वाराही देवी को माँ दुर्गा के सेना की सेनापति बताया गया है. उन्होंने शुम्भ निशुम्भ नामक राक्षसों के साथ युद्ध में देवी दुर्गा की सहायता की थी.
  • तंत्र साधना: तंत्र साधना में वाराही देवी की उपासना का विशेष महत्व है. इनकी उपासना मुख्यतः रात के समय की जाती है.

वाराही देवी को प्रसन्न करने के लिए आप उन्हें शंख, कमल का फूल, और गुड़ का भोग लगा सकते हैं.

अगर आप वाराही देवी के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं, तो आप इन स्थानों पर जा सकते हैं:

  • वाराणसी, उत्तर प्रदेश: यहाँ वाराणसी के दशाश्वमेध घाट के पास स्थित वाराही देवी का मंदिर एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है.
  • लोहाघाट, उत्तराखंड: यहां देवीधुरा के नाम से जाना जाने वाला वाराही देवी का मंदिर स्थित है. ये जगह प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी प्रसिद्ध है.
वाराही देवी: दुर्गा का भयंकर रूप ।
वाराही देवी: दुर्गा का भयंकर रूप ।

वाराही देवी के अवतार के बारे में दो मुख्य कथाएँ प्रचलित हैं:

पहली कथा – देवी दुर्गा की सेनापति:

  • देवी दुर्गा के सप्त माताओं (सात रूप) में से एक मानी जाने वाली वाराही देवी का अवतार शुम्भ और निशुंभ नामक राक्षसों के साथ युद्ध के समय हुआ था.
  • ये दोनों राक्षस बहुत बलशाली थे और देवताओं को परेशान किया करते थे. देवताओं ने इन राक्षसों से लड़ने के लिए माँ दुर्गा का आह्वान किया.
  • युद्ध के लिए माँ दुर्गा ने विभिन्न देवताओं से शक्ति प्राप्त की और अपने साथ सप्त माताओं को भी शामिल किया. इन्हीं सप्त माताओं में से एक थीं वाराही देवी.
  • वाराही देवी का स्वरूप भयानक और युद्ध के लिए उपयुक्त था. इनका ऊपरी शरीर माता का और नीचे का भाग वाराह (जंगली सूअर) जैसा था. वे अपने विशाल दाँतों और भयंकर गर्जना से राक्षसों को भयभीत करती थीं.
  • देवी दुर्गा और सप्त माताओं के साथ मिलकर वाराही देवी ने शुम्भ और निशुंभ का वध किया और देवताओं की विजय सुनिश्चित की.

दूसरी कथा – भगवान विष्णु के वराह अवतार की शक्ति:

  • कुछ ग्रंथों में वाराही देवी को भगवान विष्णु के वराह अवतार की शक्ति के रूप में वर्णित किया गया है.
  • भगवान विष्णु ने वराह अवतार में हिरण्याक्ष नामक राक्षस का वध किया था, जिसने पृथ्वी को पाताल लोक में छिपा दिया था.
  • वाराही देवी इसी युद्ध के दौरान प्रकट हुईं थीं. माना जाता है कि उन्होंने भगवान विष्णु को शक्ति प्रदान की थी.

इन दोनों कथाओं में से कोई भी कथा हो, वाराही देवी शक्ति, साहस और विजय का प्रतीक मानी जाती हैं.

शुम्भ और निशुंभ: राक्षसों का भयानक युग
शुम्भ और निशुंभ: राक्षसों का भयानक युग

शुम्भ और निशुंभ: राक्षसों का भयानक युग

हिन्दू पौराणिक कथाओं में शुम्भ और निशुंभ दो भयानक राक्षसों के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने देवताओं और देवियों को परेशान किया था। इनका उल्लेख देवी महात्म्य (दुर्गा सप्तशती) और अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।

उत्पत्ति और शक्ति:

  • शुम्भ और निशुंभ का जन्म महर्षि च्यवन के पुत्र शंकर से हुआ था। शंकर एक महान तपस्वी थे जिन्होंने ब्रह्मा जी से अमरत्व का वरदान प्राप्त किया था।
  • एक बार शंकर देवी शैलपुत्री की पूजा कर रहे थे, तभी देवी का वाहन सिंह क्रोधित हो गया और शंकर पर हमला करने लगा।
  • देवी शैलपुत्री ने सिंह को शांत करने का प्रयास किया, लेकिन सिंह ने शंकर का सिर काट दिया।
  • देवी शैलपुत्री अपने भक्त शंकर की मृत्यु से दुःखी हुईं और उन्होंने सिंह को श्राप दिया कि वह मृत शरीर का हिस्सा खाकर राक्षस बन जाएगा।
  • सिंह ने शंकर का सिर खा लिया और राक्षस बन गया। इस राक्षस के दो पुत्र हुए – शुम्भ और निशुंभ।
  • इन दोनों राक्षसों को अपने पिता के अमरत्व का वरदान प्राप्त था, जिसके कारण वे अजेय हो गए थे।
  • अपनी शक्तियों के मद में इन राक्षसों ने तीनों लोकों में उत्पात मचाना शुरू कर दिया।

देवताओं पर अत्याचार:

  • शुम्भ और निशुंभ ने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया।
  • उन्होंने देवताओं को अपनी सेना में शामिल होने के लिए मजबूर किया और उन्हें अपमानजनक कार्य करने के लिए कहा।
  • देवताओं ने इन राक्षसों के अत्याचारों से त्रस्त होकर देवी दुर्गा की शरण ली।

देवी दुर्गा से युद्ध:

  • देवी दुर्गा ने देवताओं की रक्षा करने का वचन दिया और शुम्भ और निशुंभ के साथ भयंकर युद्ध किया।
  • युद्ध में देवी दुर्गा ने अपने विभिन्न रूपों में राक्षसों सेना का नाश किया।
  • अंत में, देवी काली के रूप में प्रकट होकर देवी दुर्गा ने शुम्भ और निशुंभ का वध कर दिया।

शुम्भ और निशुंभ का वध:

  • देवी काली ने शुम्भ का वध अपने त्रिशूल से किया और निशुंभ का वध अपने खड्ग से किया।
  • राक्षसों के वध के बाद देवताओं ने देवी दुर्गा की स्तुति की और उनके पराक्रम का गुणगान किया।

शुम्भ और निशुंभ का महत्व:

  • शुम्भ और निशुंभ के वध की कथा बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
  • यह कथा हमें सिखाती है कि अहंकार और अत्याचार का नाश निश्चित होता है।
  • देवी दुर्गा का यह रूप शक्ति और साहस का प्रतीक है, जो हमें हर परिस्थिति में संघर्ष करने और विजय प्राप्त करने की प्रेरणा देती है।

कहानी का सार:

शुम्भ और निशुंभ की कथा हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण कथा है जो हमें सिखाती है कि अहंकार और अत्याचार का नाश निश्चित होता है। देवी दुर्गा का यह रूप शक्ति और साहस का प्रतीक है, जो हमें हर परिस्थिति में संघर्ष करने और विजय प्राप्त करने की प्रेरणा देती है।

                                         Sourced by: Shemaroo Bhakti Darshan

वाराही देवी द्वारा शुम्भ और निशुंभ का वध:

वाराही देवी, देवी दुर्गा का एक रूप, जिन्हें भगवान विष्णु के वराह अवतार की शक्ति का प्रतीक माना जाता है, उन्होंने शुम्भ और निशुंभ नामक राक्षसों के वध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

कथा:

  • शुम्भ और निशुंभ, अत्यंत शक्तिशाली राक्षस थे जिन्होंने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था।
  • देवताओं ने इन राक्षसों से त्रस्त होकर देवी दुर्गा की शरण ली।
  • देवी दुर्गा ने देवताओं की रक्षा करने का वचन दिया और युद्ध में शुम्भ और निशुंभ सेना का नाश करने लगीं।

वाराही देवी का प्रकटन:

  • युद्ध के दौरान, जब देवी दुर्गा को अकेले इन राक्षसों का सामना करना मुश्किल हो रहा था, तब देवी काली के रूप में उनका भयंकर रूप प्रकट हुआ।
  • देवी काली ने निशुंभ का वध कर दिया, लेकिन शुम्भ अभी भी जीवित था।
  • तभी, देवी दुर्गा का एक और भयानक रूप प्रकट हुआ – वाराही देवी।

वाराही देवी का स्वरूप:

  • वाराही देवी का स्वरूप अत्यंत भयानक और वीर था।
  • इनका ऊपरी शरीर माता का और नीचे का भाग वाराह (जंगली सूअर) जैसा था।
  • वे अपने विशाल दाँतों और भयंकर गर्जना से राक्षसों को भयभीत करती थीं।

शुम्भ का वध:

  • वाराही देवी ने शुम्भ पर भयंकर आक्रमण किया।
  • उन्होंने अपने विशाल दाँतों से शुम्भ का शरीर चीर दिया और उसे युद्ध भूमि पर मार गिराया।
  • इस प्रकार, वाराही देवी ने शुम्भ का वध कर देवताओं को राक्षसों के अत्याचार से मुक्ति दिलाई।

वाराही देवी का महत्व:

  • वाराही देवी शक्ति, साहस और विजय का प्रतीक हैं।
  • उनका वीर रूप हमें सिखाता है कि हमेशा बुराई का विरोध करना चाहिए और
  • धर्म की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।
  • वाराही देवी की पूजा हमें शक्ति और आत्मविश्वास प्रदान करती है।

निष्कर्ष:

शुम्भ और निशुंभ के वध की कथा में वाराही देवी का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह कथा हमें सिखाती है कि बुराई पर अच्छाई की हमेशा विजय होती है। वाराही देवी का वीर रूप हमें प्रेरणा देता है कि हम जीवन में आने वाली हर चुनौती का सामना साहस और दृढ़ संकल्प के साथ करें।

वाराही देवी के आठ रूपों के बारे में सभी ग्रंथों में एकमत नहीं पाया जाता है। हालांकि, कुछ स्रोतों में इनके पांच रूपों का वर्णन मिलता है, जबकि अन्य आठ रूपों का उल्लेख करते हैं। आठ रूपों की सूची ढूंढ पाना मुश्किल है, लेकिन यहां कुछ संभावनाएं हैं:

  • पांच रूप (तांत्रिक ग्रंथ वाराही तंत्र से):
    • स्वप्न वाराही
    • चंड वाराही
    • मही वाराही (भैरवी)
    • क्रच्चा वाराही
    • मत्स्य वाराही

इन पांच रूपों में से कुछ के नामों और स्वरूपों के बारे में ही जानकारी मिलती है।

  • अन्य संभावित रूप (विभिन्न ग्रंथों से संकलित):
    • अग्नि वाराही – अग्नि से सम्बंधित शक्तिशाली रूप
    • वज्र वाराही  रूप
    • योगेश्वरी वाराही – योग की अधिपतियां
    • धूम्र वाराही – धुएं से सम्बंधित भयानक रूप

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