विवरण

माँ दुर्गा: शक्ति की साकार रूप, हिंदू धर्म की प्रमुख देवी हैं जो शक्ति, साहस, और समृद्धि का प्रतीक हैं। उन्हें “शक्ति की साकार रूप” कहा जाता है, जो भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा और सामर्थ्य का अनुभव कराती हैं।

माँ दुर्गा शक्ति की साकार रूप
माँ दुर्गा शक्ति की साकार रूप

माँ दुर्गा

माँ दुर्गा, हिंदू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं जिन्हें शक्ति और सामर्थ्य की प्रतीक माना जाता है। उन्हें ‘देवी’ के रूप में पूजा जाता है और उनकी आराधना विभिन्न रूपों में की जाती है, जैसे कि दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती आदि।

माँ दुर्गा का चित्रण अध्यात्मिक और कल्पना से भरपूर है। उन्हें अष्टभुजा के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है, जिसके हर हाथ में एक विभिन्न आयुध और अस्त्र होते हैं। वे शक्ति, साहस, सामर्थ्य, और न्याय की देवी मानी जाती हैं।

माँ दुर्गा की कई कथाएं हैं, जो उनकी बलिदानी भक्ति, साहस, और धैर्य को प्रतिष्ठित करती हैं। उनकी आराधना नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से की जाती है, जब भक्त उन्हें नौ दिनों तक पूजते हैं और उनकी कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति करते हैं।

माँ दुर्गा का चित्रण विभिन्न संस्कृतियों और कला रूपों में किया गया है। उनकी प्रतिमाएं मंदिरों, मूर्तियों, पेंटिंग्स, और साहित्य में प्रसिद्ध हैं। उनकी आराधना समय-समय पर अलग-अलग धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में भी की जाती है।

माँ दुर्गा का चित्रण आध्यात्मिक ऊर्जा, शक्ति, साहस, और समृद्धि के प्रतीक के रूप में है, जो भक्तों को सांसारिक संघर्षों से लड़ने की शक्ति प्रदान करती हैं और उन्हें आध्यात्मिक उत्थान की ओर ले जाती हैं।

माँ दुर्गा शक्ति और सामर्थ्य की प्रतीक
माँ दुर्गा शक्ति और सामर्थ्य की प्रतीक

माँ दुर्गा की उत्पत्ति ,इतिहास, अस्त्र- शस्त्र, और  नौ रूप 

माँ दुर्गा की उत्पत्ति

माँ दुर्गा, हिन्दू धर्म में ब्रह्माण्ड की दिव्य मां, स्त्री शक्ति, दया और शक्ति का प्रतीक मानी जाती है। उनका जन्म, जिसे “दुर्गा जन्म” कहा जाता है, हिन्दू पौराणिक कथाओं में एक रोमांचक कहानी के रूप में उमड़ा है।

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, जब जगत डेमन राजा महिषासुर के अत्याचार से अभिभूत हो रहा था, तब देवताओं ने उसके तेवर सामने आने के लिए अपनी शक्ति का अनुरोध किया। डेमन, ब्रह्मा देव से एक वरदान प्राप्त कर चुका था, जिससे वह अप्रत्याशित था, क्योंकि न देवता उसे हरा सकती थी और न ही डेमन।

उनके इस विपत्ति के समय, देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु, और शिव की आवाज में मां दुर्गा को उत्पन्न किया। उन्होंने अपने आप को देवी के रूप में प्रकट किया, जो एक भव्य श्वेत शेर पर बैठी थीं, और विभिन्न देवीदेवताओं की शक्तियों का अद्वितीय समागम था।

मां दुर्गा ने महिषासुर और उसकी डेमोनिक सेना के खिलाफ नौ रात और दिनों तक कड़ी जंग लड़ी। इस युद्ध ने अच्छे और बुरे के बीच अनन्त संघर्ष का प्रतीक है। दसवें दिन, जिसे विजया दशमी या दशहरा कहा जाता है, मां दुर्गा ने महिषासुर को विजय प्राप्त किया, जिससे ब्रह्माण्ड में शांति और धर्म की स्थापना हुई।

माँ दुर्गा के जन्म की कहानी में गहरा संदेश है। वह दिव्य शक्ति का प्रतीक है, जो उत्तेजक और नाशक, दयालु और प्रगल्भ है। उनकी जीत महिषासुर पर धर्म की विजय का प्रतीक है, जो विश्वासियों को याद दिलाता है कि अंततः अच्छाई हमेशा जीतती है।

मां दुर्गा के अस्त्र- शस्त्र

शंख एक ओर, बाहरी जगत में माँ दुर्गा के प्रकटीकरण से बुराई के अंत का उद्घोष है| वहीं, शंख आंतरिक जगत में गूँजते शाश्वत संगीत का भी प्रतीक है। वह अनहद नाद, जिसे एक ब्रह्मज्ञानी साधक अपने भीतर ही सुन पाता है, जब वह पूर्ण गुरु की ज्ञान-दीक्षा से माँ के वास्तविक स्वरूप का साक्षात्कार कर लेता है।

कमल आंतरिक जगत में अमृत का द्योतक है। वहीं, बाहरी परिवेश में, माया-रूपी कीचड़ में रहते हुए भी, सूर्य-उन्मुख यानी ईश्वरोन्मुख रहने की शिक्षा देता है- कमल।

खड्ग प्रतीक है विवेक का| खड्ग की तेज़ धार मूलतः विवेक की धार की ओर इशारा है, जिससे किसी भी विकट समस्या अथवा अड़चन से उत्तम ढंग से निबटा जा सकता है।

तीर एवं धनुष– दोनों ही ऊर्जा की ओर संकेत करते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखने पर कहा जा सकता है कि धनुष स्थितिज ऊर्जा  का सूचक है और तीर गतिज ऊर्जा  का। दोनों के समन्वय से, सामूहिक प्रयास से लक्ष्य को भेदा जा सकता है। भक्ति पथ पर यह ‘स्थितिज ऊर्जा’ साधना से अर्जित की गई ऊर्जा की ओर इशारा है। वहीं, सेवा के माध्यम से मिलने वाली ऊर्जा ‘गतिज ऊर्जा’ है। भक्ति पथ के लक्ष्य यानी ईश्वर तक सेवा-साधना के संगम से ही पहुँचा जा सकता है।

त्रिशूल आदिदैविक, आधिभौतिक अथवा आध्यात्मिक- तीन तापों की और संकेत करता है| जीवन-पथ में आने वाले इन तीनों प्रकार के तापों का हरण करने वाली हैं माँ! जो साधक माँ को तत्त्व से जान लेते हैं, फिर वो इन तीनों तरह के दुःखों से ऊपर उठकर आनंद में विचरण करते हैं।

गदा संहार की सूचक है जो दुर्जनों का नाश करती है। साथ ही, आंतरिक क्षेत्र में गदा उस आदिनाम का प्रतीक है, जो इस संपूर्ण सृष्टि की सबसे शक्तिशाली तरंग है। जो व्यक्ति इस आदिनाम से जुड़ जाता है, वह फिर अपने लक्ष्य के मध्य आने वाले सारे दुर्जनों अथवा दुष्प्रवृत्तियों का सफलतापूर्वक संहार कर पाता है।

वज्र शक्ति का द्योतक है। भीतरी जगत में माँ का यह शस्त्र आत्मिक शक्ति की ओर संकेत करता है। जिस प्रकार वज्र का प्रहार खाली नहीं जाता; उसी प्रकार जो व्यक्ति आत्मिक जागृति के उपरान्त, आंतरिक शक्ति से भरपूर हो जाता है- वह भी फिर प्रत्येक चुनौती में विजयी होकर ही निकलता है।

सर्प चेतना के ऊर्ध्वगामी होने को दर्शाता है, जो कुण्डलिनी के रूप में मूलाधार चक्र में स्थित होती है। जब एक व्यक्ति के भीतर आत्मा के प्रकाश (माँ के वास्तविक स्वरूप) का प्रकटीकरण होता है, तब चेतना का विकास होता है। वह मूलाधार चक्र से सहस्रदल कमल यानी अमृतकुंड तक की यात्रा कर पाती है।

अग्नि प्रतीक है आत्मा के प्रकाश की, जो माँ का तत्त्व स्वरूप है। आत्मिक जागृति के उपरांत साधक के अंतःकरण से अज्ञानता का अंधकार छटने लगता है। अतः वह भक्ति के नाम पर किए जाने वाले समस्त रूढ़िवादी कर्मकाण्डों, प्रचलित मान्यताओं इत्यादि को तिलांजलि दे पाता है। इस प्रकार, भक्ति के शाश्वत मार्ग पर अग्रसर होकर, वह अपने जीवन का परम कल्याण कर पाता है।

 

माँ दुर्गा के नौ रूप

माँ दुर्गा के नौ रूप हैं, जो नवरात्रि के

नौ दिनों में पूजे जाते हैं। इन नौ रूपों का उल्लेख पुराणों में मिलता है और भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति और साधना का मार्ग प्रदान करते हैं।

माँ दुर्गा के नौ रूप माँ दुर्गा के नौ रूप

  1. शैलपुत्री: पहले दिन माँ दुर्गा का रूप शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है, जो पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं।
  1. ब्रह्मचारिणी: दूसरे दिन की पूजा ब्रह्मचारिणी के रूप में की जाती है, जो साधना, तपस्या, और ध्यान में निरंतर रहती हैं।
  2. चंद्रघंटा: तीसरे दिन माँ दुर्गा का चंद्रघंटा के रूप में पूजा की जाती है, जिनकी चंद्रमा के समान श्वेत चेहरा होता है।
  3. कूष्मांडा: चौथे दिन की पूजा कूष्मांडा के रूप में की जाती है, जो ब्रह्मांड के निर्माण का कारण मानी जाती हैं।
  4. स्कंदमाता: पाँचवे दिन माँ दुर्गा का स्कंदमाता के रूप में पूजा की जाती हैं, जो कार्तिक मास के सोमवार को जन्मी थीं।
  5. कात्यायनी: छठे दिन की पूजा कात्यायनी के रूप में की जाती हैं, जो महिषासुर की संहारकारिणी मानी जाती हैं।
  6. कालरात्रि: सातवें दिन माँ दुर्गा का कालरात्रि के रूप में पूजा की जाती हैं, जो भयानक रूप धारण करती हैं और शक्ति के प्रतीक होती हैं।
  7. महागौरी: आठवें दिन माँ दुर्गा का महागौरी के रूप में पूजा की जाती हैं, जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और आशीर्वाद देती हैं।
  8. सिद्धिदात्री: नौवें और अंतिम दिन माँ दुर्गा का सिद्धिदात्री के रूप में पूजा की जाती हैं, जो अपने भक्तों को सिद्धियों की प्राप्ति करती हैं।

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