कंडू ऋषि और प्रम्लोचा की कथा भारतीय पौराणिक साहित्य में प्रसिद्ध है, जो ब्रह्मर्षि कंडू और अप्सरा प्रम्लोचा के प्रेम के विषय में है।कंडू ऋषि और प्रम्लोचा की कथा महाभारत में उल्लेखित है, जिसमें ऋषि कंडू ने तपस्या में लगे हुए अपनी ध्यानभंग और उसके पश्चात् उसने प्रम्लोचा को देखा। उनका मन मोह गया और उन्होंने प्रम्लोचा के साथ भयंकर क्रोध से कहा कि वह अपने आश्रम से चली जाए। प्रम्लोचा उसके क्रोध को शांत करने के लिए उसकी तपस्या में उत्पन्न हुई, और बाद में उनकी पुत्री मारिषा उत्पन्न हुई, जिसने ब्रह्माजी की आज्ञा से सृष्टि में योगदान किया।
कंडू ऋषि की तपस्या और प्रम्लोचा का आगमन
कंडू ऋषि, वेदवेत्ताओं में श्रेष्ठ थे, जिन्होंने गोमती नदी के रमणीक तट पर घोर तपस्या की। उनकी तपस्या को भंग करने के लिए इंद्र ने प्रम्लोचा नामक अप्सरा को नियुक्त किया। प्रम्लोचा ने अपने सौंदर्य और आकर्षण से ऋषि को विचलित कर दिया। इसके बाद ऋषि और प्रम्लोचा सौ वर्षों तक मन्दराचल की कंदारा में एक साथ रहे और नाना प्रकार के भोग भोगे।
प्रम्लोचा की स्वर्गलोक जाने की इच्छा
एक दिन प्रम्लोचा ने कंडू ऋषि से कहा, “हे ब्रह्मन! अब मैं स्वर्गलोक को जाना चाहती हूँ, कृपया मुझे आज्ञा दीजिए।” ऋषि, जो प्रम्लोचा में आसक्त थे, ने कहा, “भद्रे! अभी कुछ दिन और रहो।” प्रम्लोचा ने ऋषि के साथ अगले सौ वर्षों तक और रहकर नाना प्रकार के भोग भोगे। फिर भी, जब प्रम्लोचा ने पुनः स्वर्गलोक जाने की इच्छा व्यक्त की, ऋषि ने फिर कहा, “अभी और ठहरो।”
समय का आभास और ऋषि का जागरण
नौ सौ सात वर्षों के बाद, प्रम्लोचा ने फिर से स्वर्ग जाने की प्रार्थना की। इस पर ऋषि ने पूछा, “अरी भीरु! ठीक-ठीक बता, तेरे साथ रमण करते मुझे कितना समय बीत गया?” प्रम्लोचा ने उत्तर दिया, “अब तक नौ सौ सात वर्ष, छह महीने तथा तीन दिन बीत चुके हैं।” ऋषि यह सुनकर आश्चर्यचकित हो गए और कहा, “अयि भीरु! यह तू ठीक कहती है, या हे शुभे! मेरी हँसी करती है? मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि मैं इस स्थान पर तेरे साथ केवल एक ही दिन रहा हूँ।”
ऋषि की आत्मग्लानि
प्रम्लोचा ने कहा, “हे ब्रह्मन! आपके निकट मैं झूठ कैसे बोल सकती हूँ? और फिर विशेषतया उस समय जब कि आज आप अपने धर्म-मार्ग का अनुसरण करने में तत्पर होकर मुझसे पूछ रहे हैं।” यह सुनकर ऋषि को आत्मग्लानि हुई और उन्होंने कहा, “मुझे धिक्कार है! मेरा तप नष्ट हो गया, जो ब्रह्मवेत्ताओं का धन था वह लुट गया और विवेकबुद्धि मारी गई। अहो! स्त्री को किसी ने मोह उपजाने के लिये ही रचा है!”
कंडू ऋषि का निश्चय
कंडू ऋषि ने अपनी गलती का एहसास किया और कहा, “मुझे अपने मन को जीतकर छहों ऊर्मियों (क्षुधा, पिपासा, लोभ, मोह, जरा और मृत्यु) पर विजय प्राप्त करनी चाहिए थी, किन्तु मैंने मोह के कारण अपना तप और विवेक खो दिया।” इस प्रकार, कंडू ऋषि ने अपने आत्मविस्मृति और प्रम्लोचा के मोहजाल में फंसने की कथा को समझा और स्वयं को धिक्कारते हुए अपने धर्म और तपस्या की पुनः प्रतिष्ठा का संकल्प लिया।
सोम और ऋषि कंडू की कथा: क्रोध, क्षमा और मारिषा का जन्म
सुन्दरी(प्रम्लोचा)से जबतक ऐसा कहते रहे तबतक वह [भय के कारण ] पसीने में सराबोर होकर अत्यंत काँपती रही | इसप्रकार जिसका समस्त शरीर पसीने में डूबा हुआ था और जो भय से थर-थर काँप रही थी उस प्रम्लोचा से मुनिश्रेष्ठ कंडू ने क्रोधपूर्वक कहा – ‘अरी ! तू चली जा ! चली जा !!
प्रम्लोचा का पलायन:
क्रोधित ऋषि कंडू द्वारा भगाए जाने के बाद, प्रम्लोचा भयभीत होकर आश्रम से निकल जाती हैं।
वह आकाश मार्ग से जाते हुए वृक्षों के पत्तों से अपना पसीना पोंछती हैं।
गर्भ का जन्म:
ऋषि कंडू ने प्रम्लोचा के गर्भ में एक बच्चा स्थापित किया था।
भय और पसीने से घबराई प्रम्लोचा के शरीर से यह गर्भ भी बाहर निकल जाता है।
मारिषा का जन्म:
वृक्ष, वायु और सूर्य देव मिलकर गर्भ को ग्रहण करते हैं और उसका पालन-पोषण करते हैं।
धीरे-धीरे गर्भ से मारिषा नामक एक सुंदर कन्या का जन्म होता है।
ऋषि कंडू का क्रोध शांत:
वृक्ष देव ऋषि कंडू को मारिषा के जन्म की खबर देते हैं।
इससे ऋषि कंडू का क्रोध शांत हो जाता है और वे प्रम्लोचा को क्षमा कर देते हैं।
मारिषा का वंश:
मारिषा प्रम्लोचा और ऋषि कंडू की पुत्री होने के साथ-साथ वृक्षों, वायु और सूर्य देव की भी संतान है।
कंडू की तपस्या:
इसके बाद ऋषि कंडू पुरुषोत्तमक्षेत्र नामक भगवान विष्णु की निवास-भूमि पर जाते हैं।
वहाँ वे महायोगी बनकर एकाग्र चित्त से ब्रह्मपार मन्त्र का जप करते हुए भगवान विष्णु की आराधना करते हैं।
प्रचेतागण, ऋषि कंडू और मारिषा: स्तोत्र, जन्म रहस्य और पूर्वजन्म
कहानी का सार:
यह अंश प्रचेतागण, ऋषि कंडू और उनकी पुत्री मारिषा से जुड़ी कहानी का हिस्सा है।
प्रचेतागण का अनुरोध:
प्रचेतागण ऋषि कंडू से “ब्रह्मपार” नामक परमस्तोत्र सुनना चाहते हैं, जिसका जप करते हुए उन्होंने भगवान विष्णु की आराधना की थी।
सोम ऋषि का वर्णन:
सोम ऋषि प्रचेतागण को “ब्रह्मपार” स्तोत्र का वर्णन करते हैं।
यह स्तोत्र भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करता है और उन्हें परमेश्वर, सत्यस्वरूप, तपस्वियों का रक्षक, और भक्तों का पालक बताता है।
स्तोत्र का प्रभाव:
“ब्रह्मपार” स्तोत्र का जप करते हुए ऋषि कंडू ने परमसिद्धि प्राप्त की।
सोम ऋषि बताते हैं कि जो भी व्यक्ति इस स्तोत्र का नित्य जप या श्रवण करता है, वह काम, क्रोध, लोभ आदि दोषों से मुक्त होकर मनोवांछित फल प्राप्त करता है।
मारिषा का पूर्वजन्म:
सोम ऋषि प्रचेतागण को मारिषा के पूर्वजन्म के बारे में बताते हैं।
पूर्वजन्म में महारानी:
मारिषा अपने पूर्वजन्म में एक महारानी थीं।
पति की मृत्यु के बाद पुत्रहीन होने के कारण उन्हें गहरा दुख हुआ।
विष्णु भगवान की आराधना:
अपनी भक्ति और भावनाओं से उन्होंने भगवान विष्णु को प्रसन्न किया।
वरदान की प्राप्ति:
भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि वे जन्म-जन्मों में उनके पति और प्रजापति ब्रह्मा के समान पुत्र प्राप्त करेंगी।
अन्य गुणों की प्राप्ति:
मारिषा ने कुल, शील, अवस्था, सत्य, दाक्षिण्य, शीघ्रकारिता, अविसंवादिता, सत्त्व, वृद्धसेवा और कृतज्ञता आदि गुणों के साथ-साथ सुंदर रूप और लोकप्रियता प्राप्त करने का भी वरदान प्राप्त किया।
अयोनिजा जन्म:
मारिषा ने माता के गर्भ से जन्म न लेकर अयोनिजा (योनि के बिना) जन्म लेने का भी वरदान प्राप्त किया।
मारिषा का प्रचेताओं के साथ विवाह एक महत्वपूर्ण घटना है
मारिषा का प्रचेताओं के साथ विवाह एक महत्वपूर्ण घटना है, जो हिंदू पौराणिक कथाओं में गहन आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व रखती है। इस विवाह के पीछे कुछ प्रमुख कारण हैं, जिनका उल्लेख विभिन्न पुराणों में मिलता है।
1. प्रचेताओं की तपस्या और भगवान शिव का वरदान
प्रचेताओं ने लंबी और कठोर तपस्या की थी, जिससे भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। इस तपस्या के फलस्वरूप, भगवान शिव ने प्रचेताओं को यह वचन दिया कि वे एक अद्वितीय और दिव्य कन्या से विवाह करेंगे, जो उनके वंश को आगे बढ़ाएगी।
2. पृथ्वी पर वृक्षों का अत्यधिक विस्तार
प्रचेताओं की तपस्या के दौरान, पृथ्वी पर वृक्षों का अत्यधिक विस्तार हो गया था, जिससे प्रजा को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। जब प्रचेताओं ने जल से निकलकर इस स्थिति को देखा, तो वे अत्यंत क्रोधित हुए और अपने मुख से वायु और अग्नि को छोड़कर वृक्षों का नाश करना आरंभ किया।
3. सोम और प्रचेताओं की संधि
वृक्षों के नाश के समय, वृक्षों के राजा सोम ने प्रचेताओं के पास जाकर उन्हें शांत किया और संधि का प्रस्ताव रखा। सोम ने प्रचेताओं को बताया कि उन्होंने भविष्य को जानकर एक दिव्य कन्या, मारिषा, का पालन-पोषण किया है, जो उनके वंश को आगे बढ़ाने वाली होगी।
4. मारिषा का दिव्य उत्पत्ति और विशेषता
मारिषा का जन्म एक दिव्य घटना थी। वह वृक्षों और सोम के तेज से उत्पन्न हुई थीं। मारिषा एक अद्वितीय और सुंदर कन्या थीं, जिनका भविष्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना निश्चित था। इसलिए, मारिषा का विवाह प्रचेताओं से हुआ ताकि उनका वंश बढ़ सके और धरती पर संतुलन स्थापित हो सके।
5. दक्ष प्रजापति का जन्म
मारिषा और प्रचेताओं के विवाह से एक परम विद्वान और तेजस्वी पुत्र का जन्म हुआ, जिसे दक्ष प्रजापति कहा गया। दक्ष प्रजापति ने प्रजा की वृद्धि और सृष्टि के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस प्रकार, मारिषा और प्रचेताओं का विवाह सृष्टि के संतुलन और विकास के लिए महत्वपूर्ण था।
6. देवताओं और मानवों के बीच संतुलन
मारिषा का विवाह प्रचेताओं से होने से देवताओं और मानवों के बीच संतुलन स्थापित हुआ। यह विवाह दोनों पक्षों के लिए लाभकारी था और इससे सृष्टि का संतुलन बना रहा।
निष्कर्ष
मारिषा का प्रचेताओं से विवाह पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसने न केवल प्रचेताओं के वंश को बढ़ाया बल्कि सृष्टि के संतुलन और विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह विवाह आध्यात्मिक, धार्मिक, और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो प्रचेताओं की तपस्या, सोम की मध्यस्थता, और मारिषा की दिव्यता को प्रदर्शित करता है।
दक्ष की आठ कन्याओं का वंशावली:
दक्ष प्रजापति की आठ कन्याओं का वंशावली इस प्रकार है:
- सती: सती, दक्ष की सबसे प्रसिद्ध कन्या थीं। उन्होंने भगवान शिव से विवाह किया। सती का यज्ञ में दक्ष द्वारा अपमान किए जाने के बाद उन्होंने अपना जीवन त्याग दिया।
- विरंचि: विरंचि का विवाह कश्यप ऋषि से हुआ। उनके पुत्रों में इंद्र, विष्णु, और अग्नि शामिल हैं।
- सुरभि: सुरभि का विवाह कश्यप ऋषि से हुआ। उनके पुत्रों में गाय, घोड़ा, हाथी, ऊंट, और भेड़ आदि शामिल हैं।
- शिलोत्मा: शिलोत्मा का विवाह कश्यप ऋषि से हुआ। उनके पुत्रों में पक्षी और वृक्ष शामिल हैं।
- संवर्त: संवर्त का विवाह कश्यप ऋषि से हुआ। उनके पुत्रों में सर्प और जलचर प्राणी शामिल हैं।
- दनु: दनु का विवाह कश्यप ऋषि से हुआ। उनके पुत्रों में दैत्य और राक्षस शामिल हैं।
- कपिला: कपिला का विवाह कश्यप ऋषि से हुआ। उनके पुत्रों में नाग और अन्य सरीसृप शामिल हैं।
- क्रोधा: क्रोधा का विवाह कश्यप ऋषि से हुआ। उनके पुत्रों में क्रोधित प्राणी शामिल हैं।