विष्णु पुराण भाग 5 में भगवान कृष्ण की अद्भुत लीलाओं का वर्णन है, जिसमें उनके जन्म, बाल लीलाओं, कंस का वध, महाभारत युद्ध में उनकी भूमिका और अंततः शिकारी जरा द्वारा बाण लगने की घटनाएँ शामिल हैं। यह भाग धर्म, सत्य और भक्ति का संदेश देता है।

भगवान श्रीकृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म एक अद्भुत और दिव्य घटना है, जो विष्णु पुराण, भागवत पुराण, और अन्य प्राचीन ग्रंथों में विस्तृत रूप से वर्णित है। श्रीकृष्ण का अवतार मानव जाति की रक्षा और अधर्म के नाश के लिए हुआ था। उनकी जन्मकथा अत्यंत मार्मिक और चमत्कारिक घटनाओं से भरी हुई है।

कंस का अत्याचार

कृष्ण जन्म की कहानी का प्रारंभ मथुरा के अत्याचारी राजा कंस से होता है। कंस, राजा उग्रसेन का पुत्र था, लेकिन उसने अपने पिता को कैद कर खुद को राजा घोषित कर दिया। एक दिन, जब कंस अपनी बहन देवकी और बहनोई वसुदेव को उनके विवाह के बाद रथ पर विदा कर रहा था, तभी एक आकाशवाणी हुई:

“हे कंस! तुझे जिस स्त्री को बड़े प्रेम से विदा कर रहा है, उसी का आठवां पुत्र तेरा संहार करेगा।”

इस भविष्यवाणी ने कंस को भयभीत कर दिया और उसने तुरंत देवकी और वसुदेव को कैद में डाल दिया। उसने यह भी ठान लिया कि वह देवकी के हर संतान को मार डालेगा।

देवकी और वसुदेव की कैद

कंस ने देवकी के पहले छह संतानों को जन्म लेते ही मार डाला। सातवें संतान के रूप में, बलराम का जन्म हुआ, जिन्हें योगमाया की कृपा से रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया गया। इसके बाद, देवकी ने आठवें पुत्र के रूप में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को जन्म दिया।

कृष्ण का जन्म

अष्टमी की रात, जब मथुरा में भारी वर्षा हो रही थी और कंस की कारागार में घना अंधेरा छाया हुआ था, तभी देवकी ने आधी रात के समय श्रीकृष्ण को जन्म दिया। उनके जन्म के समय, चारों ओर दिव्य प्रकाश फैल गया और कारागार के ताले स्वयं खुल गए।

भगवान विष्णु ने वसुदेव और देवकी को आदेश दिया कि वे नवजात कृष्ण को गोकुल में नंद बाबा और यशोदा के पास ले जाएं और बदले में यशोदा की नवजात पुत्री को ले आएं। भगवान विष्णु ने वसुदेव को यह भी विश्वास दिलाया कि उनकी कोई भी बाधा नहीं आएगी।

वसुदेव का गोकुल जाना

वसुदेव ने भगवान के आदेश का पालन किया। जैसे ही उन्होंने कृष्ण को टोकरी में रखा, कारागार के सभी पहरेदार गहरी नींद में सो गए और ताले स्वतः खुल गए। भारी बारिश के बावजूद, वसुदेव ने यमुना नदी पार की। इस दौरान, शेषनाग ने अपने फन से वसुदेव और कृष्ण को बारिश से बचाया।

गोकुल में कृष्ण का आगमन

गोकुल पहुंचकर, वसुदेव ने नवजात कृष्ण को नंद बाबा और यशोदा के पास रखा और यशोदा की पुत्री को लेकर वापस मथुरा आ गए। जब कंस ने नवजात कन्या को मारने का प्रयास किया, तो वह देवी दुर्गा के रूप में प्रकट हुई और कंस को चेतावनी दी कि उसका वध करने वाला कृष्ण जीवित है और उसे जल्द ही उसका अंत करेगा।

कथा का महत्व

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म न केवल अधर्म और अत्याचार के नाश के लिए हुआ था, बल्कि यह भी संदेश देता है कि जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब भगवान विष्णु अवतार लेते हैं। उनकी जन्मकथा में दिव्य चमत्कारों और भक्तों की भक्ति का अद्भुत संगम है, जो हर युग में मानवता को प्रेरणा देता है।

इस प्रकार, श्रीकृष्ण का जन्म कथा एक महत्वपूर्ण धार्मिक और आध्यात्मिक घटना है, जो भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में एक विशेष स्थान रखती है।

तुलसी देवी और भगवान विष्णु की कथा
तुलसी देवी और भगवान विष्णु की कथा

वृंदावन की लीलाएँ

वसुदेव ने नवजात कृष्ण को गोकुल में नंद बाबा और यशोदा के घर पहुंचाया, और वहां से यशोदा की नवजात पुत्री को लेकर लौट आए। कंस ने यशोदा की पुत्री को मारने की कोशिश की, लेकिन वह देवी दुर्गा के रूप में प्रकट होकर कंस को उसकी मृत्यु की चेतावनी देकर चली गईं।

गोकुल और वृंदावन में, कृष्ण ने बाल लीलाएँ कीं। उन्होंने पूतना, शकटासुर, और अन्य राक्षसों का वध किया। गोवर्धन पर्वत को उठाकर इंद्र के प्रकोप से गोकुलवासियों की रक्षा की और कालिया नाग का दमन किया।

मथुरा और कंस का वध

जब कंस ने कृष्ण की बढ़ती शक्ति के बारे में सुना, तो उसने कृष्ण और बलराम को मथुरा बुलाया। यहां पर भी अनेक षड्यंत्रों के बावजूद, कृष्ण और बलराम ने कंस के सभी योजनाओं को विफल कर दिया। अंततः, कृष्ण ने कुश्ती के अखाड़े में कंस का वध कर उसके अत्याचारों से मथुरा को मुक्त किया।

द्वारका और महाभारत

कंस का वध करने के बाद, कृष्ण ने मथुरा छोड़कर द्वारका नगरी बसाई और यदुवंशियों की रक्षा की। महाभारत के युद्ध में कृष्ण ने अर्जुन के सारथी के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भगवद गीता का उपदेश दिया।

जरा द्वारा बाण और कृष्ण का पार्थिव अंत

महाभारत युद्ध के बाद, कृष्ण ने द्वारका में अपनी लीलाएं जारी रखीं। लेकिन यदुवंश में आपसी कलह और संघर्ष बढ़ने लगा। एक दिन, कृष्ण एक वन में ध्यानमग्न थे, तभी जरा नामक एक शिकारी ने उनके पैर को हिरण समझकर बाण मार दिया। बाण के लगने से कृष्ण ने अपने पार्थिव शरीर का त्याग कर दिया और वैकुंठ धाम को प्रस्थान किया।

कथा का महत्व

भगवान कृष्ण की लीलाएं हमें धर्म, सत्य, और कर्तव्य का पालन करने की शिक्षा देती हैं। उनके जीवन के प्रत्येक प्रसंग में गहरे आध्यात्मिक संदेश छिपे हुए हैं, जो जीवन को सही दिशा में ले जाने के लिए प्रेरित करते हैं।

विष्णु पुराण के इस भाग में भगवान कृष्ण के जन्म से लेकर उनके पार्थिव अंत तक की कथा विस्तारपूर्वक वर्णित है, जो हमारे जीवन में सदाचार, भक्ति, और धर्म की प्रतिष्ठा करती है।

जरा द्वारा बाण और श्रीकृष्ण का पार्थिव अंत

यदुवंश का अंत और द्वारका का विनाश

महाभारत युद्ध के बाद, भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका में अपनी लीलाएं जारी रखीं और यदुवंशियों का नेतृत्व किया। समय बीतता गया, और यदुवंशियों में आपसी कलह और मद बढ़ता गया। एक समय ऐसा आया जब यदुवंशियों के बीच हुए विवाद ने भीषण संघर्ष का रूप ले लिया, और वे आपस में ही लड़कर नष्ट हो गए।

प्रभास क्षेत्र की घटना

जब यदुवंशियों का नाश हो गया, तो श्रीकृष्ण को ज्ञात हुआ कि उनका समय भी पूरा हो गया है। वे प्रभास क्षेत्र में गए, जहाँ वे एक पीपल के वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे थे। उसी समय, जरा नामक एक शिकारी, जो हिरण का शिकार कर रहा था, ने कृष्ण के पैर को हिरण का मुख समझकर बाण चला दिया।

श्रीकृष्ण का पार्थिव अंत

जरा का बाण श्रीकृष्ण के पैर में लगा और उन्होंने अपना पार्थिव शरीर छोड़ने का निर्णय लिया। जरा, जब यह देखता है कि उसने किस पर बाण चलाया है, तो वह बहुत दुखी और भयभीत हो जाता है। परंतु, श्रीकृष्ण उसे शांत करते हैं और बताते हैं कि यह सब दिव्य योजना का ही एक हिस्सा है।

कृष्ण का संवाद और मोक्ष

श्रीकृष्ण ने जरा को आशीर्वाद दिया और अपने सभी निकटस्थ भक्तों को अंतिम निर्देश दिए। इसके बाद, श्रीकृष्ण ने योगमुद्रा में बैठकर अपने पार्थिव शरीर का त्याग कर दिया और वैकुंठ धाम को प्रस्थान किया।

घटना का महत्व

श्रीकृष्ण के पार्थिव अंत का यह प्रसंग कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं देता है:

  1. धर्म का पालन: श्रीकृष्ण का जीवन और उनके अंत की कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए।
  2. अवश्यंभावी मृत्यु: यह कथा यह भी दर्शाती है कि मृत्यु अवश्यंभावी है और इसे स्वीकार करना ही मानव जीवन का सत्य है।
  3. दिव्य योजना: जरा द्वारा बाण चलाने की घटना हमें यह समझाती है कि प्रत्येक घटना, चाहे वह कितनी भी अप्रिय क्यों न हो, दिव्य योजना का हिस्सा होती है।

श्रीकृष्ण का जीवन और उनका पार्थिव अंत, दोनों ही भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और जीवन के गहरे आध्यात्मिक और नैतिक संदेश प्रदान करते हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top
FORMS OF LORD SHIVA शिव पुराण – अमृत की झरना Avatars of Vishnu
Mythological Stories

FREE
VIEW