विष्णु पुराण भाग 1: ब्रह्मांड का सृजन – इस लेख में विष्णु पुराण के प्रथम अंश का वर्णन है, जिसमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति, सृष्टि के विभिन्न तत्वों की रचना, युगों का विवरण और भगवान विष्णु के अवतारों का महत्व बताया गया है। पढ़ें और जानें हिन्दू धर्म के इस महत्वपूर्ण ग्रंथ की महिमा।
ब्रह्मांड का सृजन
विष्णु पुराण के अनुसार, सृष्टि की उत्पत्ति और ब्रह्मांड का सृजन भगवान विष्णु की कृपा से हुआ है। विष्णु पुराण के प्रथम अंश में सृष्टि के आरंभ का विवरण मिलता है। इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश के त्रिदेवों का वर्णन होता है, जो सृष्टि, पालन और संहार के कर्ता हैं।
प्रारंभिक अवस्था
प्रारंभ में, सारा ब्रह्मांड अव्यक्त और अव्यवस्थित था। सब कुछ अंधकारमय, शून्य और अस्थिर था। उस समय कोई दिन, रात, आकाश, पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु आदि कुछ भी नहीं था। केवल एक परम तत्व था, जो स्वयं भगवान विष्णु थे। वह स्वयं में पूर्ण, निराकार, अनंत और अपार शक्ति के धनी थे।
महाप्रलय
सृष्टि के पूर्व, महाप्रलय का समय था। उस समय सब कुछ जलमग्न था और भगवान विष्णु योगनिद्रा में विश्राम कर रहे थे। उनके नाभि से एक विशाल कमल प्रकट हुआ, और उस कमल से ब्रह्मा जी का जन्म हुआ। ब्रह्मा जी ने अपने चारों ओर देखा और स्वयं के अस्तित्व का विचार किया।
सृष्टि का प्रारंभ
भगवान विष्णु के आदेश से ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना का कार्य आरंभ किया। उन्होंने सबसे पहले जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु और आकाश इन पांच महाभूतों की रचना की। फिर उन्होंने इनके सम्मिलन से विभिन्न लोकों, ग्रहों और ब्रह्मांड की रचना की।
समय की गणना
ब्रह्मा जी ने समय की गणना की व्यवस्था की। एक कल्प, जो ब्रह्मा जी का एक दिन होता है, उसमें चौदह मन्वन्तर होते हैं। प्रत्येक मन्वन्तर में एक मनु होता है, और प्रत्येक मन्वन्तर के अंत में एक प्रलय होती है। एक कल्प के अंत में महाप्रलय होती है, जिसके बाद पुनः सृष्टि की रचना होती है।
विभिन्न युगों का वर्णन
सृष्टि के कालचक्र को चार युगों में विभाजित किया गया है: सत्य युग, त्रेता युग, द्वापर युग, और कलियुग। सत्य युग में धर्म का पालन सर्वश्रेष्ठ होता है और लोग सत्य और धर्म के मार्ग पर चलते हैं। त्रेता युग में धर्म की स्थिति थोड़ी घटती है, जबकि द्वापर युग में धर्म और अधर्म में संतुलन होता है। कलियुग में अधर्म की वृद्धि होती है और धर्म का ह्रास होता है। इन युगों के परिवर्तन के साथ-साथ सृष्टि में भी विभिन्न प्रकार के परिवर्तन होते रहते हैं।
अव्यक्त और सृष्टि का बीज:
शुरुआत में, कुछ भी नहीं था, न अस्तित्व और न ही अनस्तित्व। यह एक अविश्वसनीय अवस्था थी, जिसे शब्दों में बयां करना असंभव था, शुद्ध संभावनाओं का एक विशाल सागर। विष्णु पुराण इसे महा-शक्ति के रूप में वर्णित करता है, जो चेतना का विशाल महासागर है। यहाँ, अनंत सर्प, अनंत शेष, जिसके ऊपर भगवान विष्णु योग निद्रा में विश्राम करते हैं। अनंत शेष सृष्टि और विनाश के अनंत चक्रों की क्षमता का प्रतीक है। भगवान विष्णु की नींद पूर्ण शांति की अवस्था का प्रतीक है, सृष्टि के तूफान से पहले की शांति।
कमल का खिलना: सृष्टिकर्ता का जन्म:
भगवान विष्णु की नाभि से, एक ज्योतिर्मय कमल का फूल निकलता है, जो जीवन और प्रकट होने की क्षमता का प्रतीक है। यह कमल, आदिम जल से अछूता, सृष्टि के बीज का प्रतीक है। इस पवित्र फूल के अंदर सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा विराजमान हैं। जागृत होने पर, ब्रह्मा अपने उद्देश्य पर विचार करते हैं। वे महा-शक्ति में निहित विशाल क्षमता पर चिंतन करते हैं और ब्रह्मांड को जन्म देने में अपनी भूमिका को पहचानते हैं।
अव्यक्त और सृष्टि का बीज:
भगवान ब्रह्मा के जागरण के साथ ही गुणों का समावेश होता है। ये तीन मूलभूत गुण – सत्व (गुण, शुद्धता, व्यवस्था), रजस (जुनून, गतिविधि, अराजकता) और तमस (अंधकार, जड़ता, अज्ञान) – सृष्टि के निर्माण खंड बन जाते हैं। सत्व संरचना और सद्भाव के लिए आधार तैयार करता है, रजस सृष्टि के लिए गतिशीलता और प्रेरणा प्रदान करता है, और तमस विघटन और परिवर्तन की क्षमता के रूप में कार्य करता है। इन गुणों का परस्पर क्रिया-कलाप पूरे ब्रह्मांड को नियंत्रित करता है, जो निरंतर परिवर्तन और संतुलन सुनिश्चित करता है।
पांच तत्व और लोकों का जन्म:
भगवान ब्रह्मा, गुणों के ज्ञान से लैस, सृष्टि का कार्य शुरू करते हैं। वे सबसे पहले पाँच महाभूतों (महान तत्वों) – आकाश (अंतरिक्ष), वायु (हवा), अग्नि (आग), जल (पानी) और पृथ्वी (धरती) को प्रकट करते हैं। ये तत्व, पदार्थ का सार, विभिन्न अनुपातों में संयोजित होते हैं और परस्पर क्रिया करते हैं, जिससे ब्रह्मांड को बनाने वाले चौदह लोक अस्तित्व में आते हैं।
उपरी लोक: देवताओं का निवास:
पृथ्वी लोक के ऊपर सात ऊपरी लोक स्थित हैं। ये निवास स्थान क्रमिक रूप से अधिक सूक्ष्म और दिव्य होते हैं, और देवताओं (दिव्य प्राणियों) और विभिन्न दिव्य संस्थाओं के निवास स्थान हैं। ब्रह्मलोक, सबसे ऊंचा लोकाधार, स्वयं भगवान ब्रह्मा का निवास स्थान है। इसके नीचे इंद्र (देवताओं के राजा), अग्नि (अग्नि देवता), यम (मृत्यु के देवता), और अन्य प्रमुख देवताओं के निवास स्थान हैं। प्रत्येक लोक की अपनी विशेषताएं, निवासी और ब्रह्मांडीय व्यवस्था में भूमिका होती है।
निचले लोक: पूर्वजों और रहस्यमय प्राणियों का क्षेत्र:
पृथ्वी लोक के नीचे सात निचले लोक स्थित हैं। ये लोकाधार क्रमिक रूप से अधिक घने और अंधेरे होते हैं, और आध्यात्मिक विकास के लिए।
देवताओं और असुरों का उत्पत्ति
भगवान विष्णु की माया से ही देवताओं और असुरों का उत्पत्ति हुआ। देवता सृष्टि की रक्षा और पालन के लिए होते हैं, जबकि असुर अधर्म और अराजकता फैलाने के लिए होते हैं। भगवान विष्णु समय-समय पर अपने अवतार धारण करके सृष्टि की रक्षा करते हैं और अधर्म का नाश करते हैं।
मनु और सृष्टि का विस्तार
ब्रह्मा जी ने स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा को उत्पन्न किया। स्वायंभुव मनु और शतरूपा से मानव जाति की उत्पत्ति हुई। उन्होंने विभिन्न ऋषियों, मुनियों, देवताओं और अन्य जीवों की रचना की। ब्रह्मा जी ने चारों वर्णों की भी स्थापना की: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। उन्होंने प्रत्येक वर्ण के कर्तव्यों और धर्मों का निर्धारण किया।
प्रकृति और पुरुष
विष्णु पुराण में प्रकृति और पुरुष का भी विस्तृत वर्णन है। प्रकृति और पुरुष दोनों मिलकर सृष्टि की रचना करते हैं। प्रकृति, जो मायात्मक शक्ति है, सृष्टि की स्थूल और सूक्ष्म रूपों की रचना करती है, जबकि पुरुष, जो स्वयं भगवान विष्णु हैं, इस सृष्टि का संचालक और साक्षी हैं।
अवतारों का महत्व
भगवान विष्णु ने समय-समय पर विभिन्न अवतार धारण किए हैं, जिनमें से दस प्रमुख अवतार माने गए हैं। ये दस अवतार हैं: मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, और कल्कि। प्रत्येक अवतार का उद्देश्य सृष्टि की रक्षा और धर्म की स्थापना करना है।
मत्स्य अवतार
मत्स्य अवतार में भगवान विष्णु ने एक मछली का रूप धारण किया और मनु को प्रलय के समय बचाया।
कूर्म अवतार
कूर्म अवतार में उन्होंने एक कछुए का रूप धारण किया और समुद्र मंथन के समय मंदराचल पर्वत को अपने पीठ पर धारण किया।
वराह अवतार
वराह अवतार में भगवान विष्णु ने एक वराह (सूअर) का रूप धारण किया और पृथ्वी को दैत्य हिरण्याक्ष से मुक्त किया।
नृसिंह अवतार
नृसिंह अवतार में उन्होंने आधे मानव और आधे सिंह का रूप धारण किया और दैत्य हिरण्यकशिपु का वध किया।
वामन अवतार
वामन अवतार में भगवान विष्णु ने एक बौने ब्राह्मण का रूप धारण किया और राजा बलि से तीन पग भूमि मांगकर तीनों लोकों को पुनः देवताओं को लौटा दिया।
परशुराम अवतार
परशुराम अवतार में भगवान विष्णु ने एक ब्राह्मण योद्धा का रूप धारण किया और अत्याचारी क्षत्रियों का विनाश किया।
राम अवतार
राम अवतार में उन्होंने अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र के रूप में जन्म लिया और रावण का वध करके धर्म की स्थापना की।
कृष्ण अवतार
कृष्ण अवतार में उन्होंने मथुरा के राजा कंस का वध किया और महाभारत युद्ध में पांडवों का मार्गदर्शन किया।
बुद्ध अवतार
बुद्ध अवतार में उन्होंने भगवान बुद्ध के रूप में जन्म लिया और लोगों को अहिंसा और धर्म का पाठ पढ़ाया।
कल्कि अवतार
कल्कि अवतार में भगवान विष्णु कलियुग के अंत में जन्म लेंगे और अधर्म का नाश करेंगे।
सृष्टि के पालनकर्ता
भगवान विष्णु को सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में जाना जाता है। वह संसार के सभी जीवों का पालन और सुरक्षा करते हैं। उनकी शक्ति और कृपा से ही सृष्टि का संचालन होता है। भगवान विष्णु की महिमा अपरंपार है और उनके भक्तों को उनकी कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
अंतर्मन और बाह्य जगत
विष्णु पुराण में अंतर्मन और बाह्य जगत का भी वर्णन है। अंतर्मन की शुद्धि और बाह्य जगत की सच्चाई को समझना मनुष्य के जीवन का प्रमुख उद्देश्य है। भगवान विष्णु की आराधना और ध्यान से मनुष्य अपने अंतर्मन को शुद्ध कर सकता है और सच्चे ज्ञान की प्राप्ति कर सकता है।
विष्णु पुराण का महत्व
विष्णु पुराण हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। इसमें भगवान विष्णु की महिमा, उनके अवतारों का वर्णन और धर्म का मार्ग बताया गया है। यह पुराण न केवल धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि इसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं का भी विस्तृत वर्णन है। यह मनुष्य को धर्म, कर्म, ज्ञान और भक्ति का मार्ग दिखाता है।
निष्कर्ष
विष्णु पुराण में सृष्टि की रचना और ब्रह्मांड के सृजन का वर्णन भगवान विष्णु की कृपा से हुआ है। ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु के आदेश से सृष्टि की रचना की और विभिन्न युगों, देवताओं, असुरों और मनुष्यों की उत्पत्ति की। भगवान विष्णु ने समय-समय पर अवतार धारण करके सृष्टि की रक्षा और धर्म की स्थापना की। विष्णु पुराण हिन्दू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में से एक है और इसमें सृष्टि, धर्म, और भगवान विष्णु की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसके अध्ययन से मनुष्य को धर्म और भक्ति का मार्ग मिलता है और भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।