विष्णु पुराण का दूसरा भाग ब्रह्मांड के विभिन्न ग्रह-तंत्रों के बारे में विस्तृत वर्णन प्रदान करता है, जैसे कि भूमंडल, पृथ्वी के नीचे के क्षेत्र, उच्च ग्रह-तंत्र, पाताल लोक और नरकीय ग्रहों को शामिल करता है।भरत महाराज का इतिहास प्राचीन भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण चरित्र है, जिसका जीवन और विचार धार्मिकता, त्याग, और आत्मज्ञान की महत्वपूर्ण सिख देते हैं।
ब्रह्माण्ड के ग्रहीय प्रणालियों का वर्णन
विष्णु पुराण के दूसरे भाग में ब्रह्माण्ड के विभिन्न ग्रहीय प्रणालियों का विस्तृत वर्णन किया गया है, जो कि भूमण्डल, पृथ्वी के नीचे के क्षेत्र, उच्च ग्रहीय प्रणालियाँ, पाताल लोक और नरकीय ग्रहों सहित हैं।
भूमण्डल: भूमण्डल मानवीय जगत को कहा जाता है, जिसमें सात वृत्ताकार द्वीप हैं जो सात समुद्रों द्वारा अलग किए गए हैं और कई पर्वत श्रृंखलाओं द्वारा घिरे हैं। इन द्वीपों पर विभिन्न प्रकार के जीव निवास करते हैं।
पृथ्वी के नीचे के क्षेत्र: पृथ्वी के नीचे विभिन्न क्षेत्र हैं जो निचली ग्रहीय प्रणालियों के रूप में वर्णित होते हैं। इन क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के दानव, सर्प और अन्य प्राणियों का निवास होता है।
उच्च ग्रहीय प्रणालियाँ: पृथ्वी से परे उच्च ग्रहीय प्रणालियाँ होती हैं, जो देवताओं, देवताधिपतियों और स्वर्गीय प्राणियों द्वारा निवास किए जाते हैं। ये स्वर्गीय प्रणालियाँ अत्यधिक सौंदर्य, समृद्धि और दिव्य विलास से भरी होती हैं।
पाताल लोक: पाताल लोक पृथ्वी के नीचे की ओर स्थित अंतरिक्ष का हिस्सा है। यहां विभिन्न राक्षस, सर्प और अन्य प्राणियों का निवास होता है। पाताल को साँपों द्वारा रक्षित धन और संपत्ति से भी जोड़ा गया है।
नरकीय ग्रह: विष्णु पुराण में विभिन्न नरकीय ग्रहों का वर्णन किया गया है, जहां पापी आत्माओं को उनके पिछले कर्मों के अनुसार प्रताड़ित और कष्टग्रस्त किया जाता है। ये नरकीय ग्रह तेजी, ठंड, और पीड़ा के लिए प्रसिद्ध हैं।
सूर्य और चंद्रमा की रथ वाहन का वर्णन: सूर्य और चंद्रमा की रथ वाहनों का वर्णन भी विष्णु पुराण में महानतम है। सूर्य का रथ सोने और मणियों से सजा होता है और सात घोड़े द्वारा खींचा जाता है, जो प्रकाश के सात रंगों को प्रतिनिधित करते हैं। चंद्रमा का रथ चांदी से अलंकृत होता है और दस सफेद घोड़े द्वारा खींचा जाता है।
भरत महाराज का इतिहास
भरत महाराज का इतिहास हिंदू पुराणों में एक महत्वपूर्ण रूप से उल्लेख किया गया है। वे पुरातन भारतीय साहित्य और धार्मिक ग्रंथों में एक प्रमुख चरित्र हैं। भरत महाराज के जीवन का वर्णन मुख्य रूप से “विष्णु पुराण” में किया गया है।
भरत महाराज का जन्म ऋषि भरद्वाज के पुत्र धृतराष्ट्र से हुआ था। उनका नाम उनकी माता के नाम पर रखा गया था। वे बहुत ही शूरवीर, धर्मात्मा और ज्ञानी थे।
भरत महाराज ने अपने पिता का राज्य स्वीकार नहीं किया और वनवास में चले गए। उन्होंने अपने पिता का राज्य अपने भाई के नाम कर दिया और वन में आत्मज्ञान की खोज में लग गए।
वन में रहते समय, भरत महाराज ने एक शिशु का ध्यान रखा, जिसके माता पशुपुत्री थी। ध्यान में इतना व्यस्त रहते हुए भरत महाराज ने अपने असंख्य पुण्यों के कारण अन्तिम समय में उस शिशु के रूप में जन्म लिया।
भरत महाराज का जन्म होने के बाद उन्होंने अपना पितृ-वाक्य पालन करते हुए वन में रहते हुए तपस्या और ध्यान में अपने जीवन को बिताया। उन्होंने भगवान की उपासना की और निष्काम भक्ति में लगे रहते हुए अपने आप को आत्मतत्त्व में स्थित किया।
भरत महाराज का जीवन हमें यह सिखाता है कि धर्म और निष्काम भक्ति का महत्व क्या है। उन्होंने धर्म के पथ पर चलते हुए अपने जीवन को समर्पित किया और आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए तपस्या की। उनकी उपासना, त्याग और निष्काम कर्म ने उन्हें आत्मा की अद्वितीयता की प्राप्ति में सहायता की। भर्तृहरि ने उनके जीवन को “नित्यश्रम” के रूप में विवेचित किया है, जो आज भी लोगों को आत्मा की खोज में प्रेरित करता है।
प्रह्लाद और हिरण्यकशिपु का इतिहास
हिंदू पौराणिक कथाओं में, प्रह्लाद और हिरण्यकशिपु की कहानी भक्ति, अहंकार और विष्णु भगवान की शक्ति का प्रतीक है। यह कथा हमें सिखाती है कि भक्ति सदैव विजयी होती है और अहंकार का नाश होता है।
हिरण्यकशिपु – दैत्यों का अहंकारी राजा:
हिरण्यकशिपु दैत्यों का राजा था। उसने अनेक युद्ध जीते थे और अपनी शक्ति और पराक्रम के लिए जाना जाता था। हिरण्यकशिपु इतना अहंकारी हो गया था कि उसने स्वयं को भगवान मान लिया और लोगों को भी ऐसा ही मानने के लिए मजबूर करने लगा।
प्रह्लाद – भगवान विष्णु का परम भक्त:
हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का भक्त था। हिरण्यकशिपु के विपरीत, प्रह्लाद विनम्र और दयालु था। वह भगवान विष्णु की पूजा करता था और उनका नाम जपता था।
हिरण्यकशिपु का प्रह्लाद को मारने का प्रयास:
जब हिरण्यकशिपु को पता चला कि प्रह्लाद विष्णु भगवान का भक्त है, तो वो क्रोधित हो गया। उसने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए। उसने प्रह्लाद को जहर दिया, उसे हाथियों के पैरों तले कुचलने की कोशिश की, उसे सांपों से डसवाया और राक्षसों से मारने का प्रयास किया।
लेकिन हर बार प्रह्लाद भगवान विष्णु की रक्षा से बच गया।
होलिका दहन और नृसिंह अवतार:
अंत में, हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका को आग में प्रवेश करने का आदेश दिया, जिसमें प्रह्लाद को भी साथ रखा गया। होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जल सकती।
हिरण्यकशिपु को विश्वास था कि प्रह्लाद आग में जल जाएगा, लेकिन भगवान विष्णु ने नृसिंह नामक रूप धारण कर हिरण्यकशिपु का वध कर दिया। नृसिंह आधा मानव और आधा सिंह का रूप रखते थे।
नृसिंह ने हिरण्यकशिपु को अपनी गोद में लिया और एक स्तंभ से टकराकर उसका वध कर दिया।
प्रह्लाद की विजय:
हिरण्यकशिपु के वध के बाद, प्रह्लाद दैत्यों के राजा बन गए। उन्होंने राज्य में शांति और समृद्धि स्थापित की। प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे और उनकी कथा आज भी भक्ति और विष्णु भगवान की शक्ति का प्रतीक है।
कथा का सार:
- भक्ति सदैव विजयी होती है।
- अहंकार का नाश होता है।
- भगवान अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
- सत्य का सदैव विजय होता है।
यह कथा होली त्योहार का भी आधार है। होली के दिन हम प्रह्लाद की भक्ति और हिरण्यकशिपु के वध का जश्न मनाते हैं।
अतिरिक्त जानकारी:
- प्रह्लाद और हिरण्यकशिपु की कथा कई हिंदू ग्रंथों में मिलती है, जैसे कि भागवत पुराण, विष्णु पुराण और नारायणीय महापुराण।
- प्रह्लाद को भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है।
- हिरण्यकशिपु का वध भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से एक है।