विष्णु पुराण की कहानियाँ :दुर्वासा का शाप और इन्द्र की कहानी एवं ध्रुव महाराज की कथा। दुर्वासा मुनि द्वारा इन्द्र को शाप देने की कहानी और ध्रुव महाराज की तपस्या की प्रेरणादायक कथा, विष्णु पुराण से ली गईं इन कहानियों में निहित महत्वपूर्ण शिक्षाएँ।
दुर्वासा का शाप और इन्द्र की कहानी
दुर्वासा मुनि का नाम भारतीय पौराणिक कथाओं में अत्यंत प्रसिद्ध है। वह अपने क्रोध के लिए जाने जाते थे और उनके शाप का भय देवताओं और राक्षसों दोनों को था। एक बार की बात है, दुर्वासा मुनि स्वर्गलोक में आए। वहाँ इन्द्रदेव ने उनका स्वागत किया। दुर्वासा मुनि ने इन्द्र को एक दिव्य माला भेंट की, जिसे इन्द्र ने अपने ऐरावत हाथी की सूंड पर रख दिया। ऐरावत ने उस माला को भूमि पर फेंक दिया। इस अपमान से दुर्वासा मुनि क्रोधित हो गए और उन्होंने इन्द्र को शाप दिया कि उनका सारा ऐश्वर्य नष्ट हो जाएगा।
इस शाप के परिणामस्वरूप इन्द्र की शक्ति और ऐश्वर्य नष्ट हो गया और असुरों ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन का उपाय बताया, जिसके द्वारा अमृत प्राप्त हो सकता था। देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया और अनेक दिव्य वस्तुएं प्राप्त हुईं, जिनमें अमृत भी शामिल था। विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को अमृत पिलाया और उन्हें पुनः शक्तिशाली बनाया।
ध्रुव महाराज की कथा
ध्रुव महाराज की कहानी विष्णु पुराण में एक प्रेरणादायक कथा है। राजा उत्तानपाद के दो रानियाँ थीं – सुनीति और सुरुचि। ध्रुव सुनीति के पुत्र थे और उत्तम सुरुचि के। एक बार राजा उत्तानपाद अपने पुत्र उत्तम को गोद में लेकर बैठा था। ध्रुव भी वहाँ पहुंचे और राजा की गोद में बैठने की इच्छा जताई। लेकिन सुरुचि ने ध्रुव को डांटते हुए कहा कि यदि वे राजा की गोद में बैठना चाहते हैं, तो उन्हें तपस्या कर भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करनी होगी और अगले जन्म में उनका पुत्र बनना होगा।
इस अपमान से दुखी होकर ध्रुव अपनी माँ सुनीति के पास गए। सुनीति ने उन्हें समझाया कि भगवान विष्णु ही उनके दुखों का निवारण कर सकते हैं। ध्रुव ने तपस्या का निश्चय किया और वन की ओर चल पड़े। मार्ग में उन्हें नारद मुनि मिले। नारद ने ध्रुव की तपस्या को कठिन बताते हुए उन्हें वापस जाने की सलाह दी, लेकिन ध्रुव के दृढ़ संकल्प को देखकर उन्होंने उन्हें ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र की दीक्षा दी और तपस्या करने का मार्ग बताया।
ध्रुव ने कठिन तपस्या की। उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्हें दर्शन दिया। विष्णु ने ध्रुव से वर मांगने को कहा। ध्रुव ने कहा कि वे विष्णु के दर्शन मात्र से ही संतुष्ट हैं, लेकिन विष्णु ने उन्हें ध्रुव तारे का पद प्रदान किया, जो सदा अडिग और अमर रहेगा। ध्रुव की कथा से यह शिक्षा मिलती है कि सच्ची निष्ठा और तपस्या से भगवान की कृपा प्राप्त की जा सकती है और मनुष्य अपने जीवन के उच्चतम लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।
ध्रुव महाराज की यह कथा विष्णु पुराण में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है और यह दर्शाती है कि भगवान की भक्ति और तपस्या से कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है।
राजा पृथु का इतिहास:
भारतीय पौराणिक कथाओं में राजा पृथु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। वे एक प्राचीन भारतीय राजा थे जो महाभारत काल में आते हैं। पृथु का नाम उनकी शक्तिशाली और न्यायपालनीय राजनीतिक धारा के लिए जाना जाता है। उनके इतिहास का वर्णन विभिन्न पुराणों और ग्रंथों में मिलता है।
पृथु का जन्म महाराजा वेन के पुत्र के रूप में हुआ था। वेन अत्याचारी थे और धरती को विपत्ति में डाल दिया था। उनके कारण धरती फलने-फूलने बंद हो गई थी। इस संकट के बाद देवता और ऋषि मुनियों ने समुद्र मंथन की प्रक्रिया के द्वारा स्वर्ग और पृथ्वी का अमृत प्राप्त किया और उससे जन्मे अगले विष्णु अवतार, भगवान वामन को बुलाया। भगवान विष्णु ने पृथु को भगवान्त कहा और धरती के राजा बनाया।
पृथु के शासन काल में वे अपने प्रजा की कल्याण के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपने प्रजा के लिए कई नए योजनाओं को लागू किया जो उन्हें आर्थिक और सामाजिक रूप से सुदृढ़ और सशक्त बनाने में मदद की।
पृथु की एक महत्वपूर्ण कथा में उनके धर्मपत्नी सुनीति के साथ होती है। सुनीति एक सच्ची और धार्मिक रानी थी जो अपने पति के साथ धर्म और न्याय का पालन करती थी।
पृथु के शासन काल में, भूमि पर विकास के लिए उनकी नीतियों ने विख्यातता प्राप्त की थी। वे धरती को अपने पुराने स्थितियों से बाहर निकालने के लिए कार्यशील थे। उनके शासनकाल में, धरती अपनी सर्वोत्तम अवस्था में थी।
पृथु की कई और कथाएं भी हैं, जो उनके महान योगदान को दर्शाती हैं। उनके इतिहास में उनकी विजयों, धर्मपरायणता और उनके प्रजा के प्रति निष्ठा का वर्णन किया गया है। उन्होंने एक महान राजा के रूप में अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की और धर्म के मार्ग पर चलते हुए अपने प्रजा का कल्याण किया।
प्रचेता और पृथु की बेटी वृष्टिकेतु की कथा:
एक बार, पृथु राजा की पुत्री वृष्टिकेतु ने वन में खेलते हुए प्रचेताओं को देखा। प्रचेता एक विशाल वृक्ष के पुत्र थे। उन्होंने अपने पिता से पूछा कि क्या वह वृक्षों की पुत्री से विवाह कर सकते हैं।
पृथु राजा ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया और प्रचेताओं की पुत्री के साथ विवाह का आयोजन किया। प्रचेताओं की पुत्री ने राजा पृथु की पुत्री को एक अन्याय की सिख दी कि अगर उसने उनके बगीचे को काट दिया तो उन्हें क्षमा की जाएगी।
प्रचेताओं की पुत्री ने वृक्षों को धारण किया और धरती पर प्रस्तुत किया। इस रूप में, प्रचेताओं की पुत्री ने अपनी सजीवता को उनके साथ साझा किया और वे विवाह में सम्मिलित हो गए।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि प्रेम और समर्पण के माध्यम से हम सभी प्राकृतिक और अन्यायी चीजों को बदल सकते हैं और समृद्धि और सद्गुणों की प्राप्ति के लिए प्रयास कर सकते हैं। यह कहानी हमें प्रेरित करती है कि हमें अपनी प्राकृतिक संपत्तियों का सही तरीके से संरक्षण करना चाहिए और प्रकृति के साथ मिलजुलकर रहना चाहिए।